दिल की आवाज़ सुनती आ रही है लेखनी मेरी -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


हमें ज़रूरत नहीं किसी अस्त्र और शस्त्र की !! 


मेरी लेखनी की धार बहुत ही तेज है प्यारे !!


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मैं अपनी लेखनी से कभी कोई सौदा नहीं करता ! 


दिल की आवाज़ सुनती आ रही है लेखनी मेरी !!


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मेरी लेखनी ने ही मुझको इस मुकाम पर पहुंचाया है ! 


शहर के बड़े सेठ साहूकार इज़्ज़त से नाम लेते हैं !! 


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ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारी से अब तक बचे हुए हैं हम ! 


लेखनी से अपने दिल की आवाज़ बाहर निकाल देता हूं प्यारे !! 


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ऐसे लोगों के ज़मीर और जज़्बात का ज़िक्र मैं क्या करूं ! 


जो अपनी लेखनी को गिरवी रख देते हैं मुंह मांगी रकम पाकर !!


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लेखनी का किरदार कुछ इस तरह फैला है दुनिया में ! 


तकनीकी दुनिया में भी किताबों से रिश्ता कायम है !! 


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लेखनी की पूजा करता आ रहा हूं बचपन से ! 


मेरी पूजा फलित हुई है इसमें कोई शक नहीं !! 


************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


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