नेपाल में पीएम ओली की कुर्सी पर है खतरा,पद छोड़ने का पड़ रहा है दबाव,भारत के खिलाफ जाने पर भी नाराज है नेपाली जनता


नई दिल्ली: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने एक बड़ा राजनयिक फैसला लिया और भारत विरोधी भावना की लहर को जन्म दिया. हालांकि, अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए चलाए गए इस अभियान ने ऐसा मोड़ लिया है कि अब उनकी सरकार पर ही बन आई है. काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री के रूप में ओली की स्थिति डांवाडोल है और उनकी अपनी पार्टी ही चाहती है कि वो पद छोड़ दें.


नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी असल में दो कम्युनिस्ट पार्टियों का गठबंधन है- एक के अध्यक्ष हैं पुष्प कमल दहल, जिन्हें प्रचंड के नाम से भी जाना जाता है, और दूसरी की अध्यक्षता कर रहे हैं के पी शर्मा ओली. प्रचंड दो बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. उनके समर्थकों ने प्रधानमंत्री ओली पर पार्टी और सरकार को विफल करने के आरोप लगाए हैं.


अपने पद पर बने रहने और राष्ट्रवाद साबित करने के लिए ओली ने भारत के खिलाफ एक कठिन फैसला लिया. लेकिन, हवा का रुख बदल गया. इस हफ्ते, ओली सरकार को कई असफलताओं का सामना करना पड़ा. पहला, विपक्ष ने संसद में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया कि चीन ने नेपाल की 64 हेक्टेयर से अधिक भूमि का अतिक्रमण किया है.


बुधवार को, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति ने अपनी बैठक की. रिपोर्ट के अनुसार, 44 में से केवल 11 सदस्य ही ओली की तरफ थे. स्थायी समिति गुरुवार को भी अपनी बैठक जारी रखने वाली थी, लेकिन प्रधानमंत्री ओली ने इसे छोड़ने का फैसला किया. इससे पहले, नेपाल में चीनी राजदूत ने इस तरह के मामलों में खुले तौर पर हस्तक्षेप किया है, उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों के साथ बैठकें कीं ताकि मतभेदों को सुलझाया जा सके और सरकार को बचाया जा सके.


प्रधानमंत्री ओली दो पाटों के बीच पिस रहे हैं. उन्होंने भारत को छोड़कर चीन को चुना, उपनी संप्रभुता को समर्पण कर दिया लेकिन ये दांव उनपर ही उल्टा पड़ गया. ओली लंबे समय से अपने पतन की तरफ बढ़ रहे हैं, हालांकि प्रचंड के साथ ये स्थिति थोड़ी ही देर के लिए रही. ओली नेपाल की भूमि चीन के हाथों खो रहे हैं, वो भारत की सहानुभूति खो रहे हैं, वो अपने लोगों का विश्वास खो रहे हैं और अब तो वो अपनी ही पार्टी के सदस्यों का समर्थन भी खोने लगे हैं.