अंतरास्ट्रीय स्वास्थ विशेषज्ञ लाक डाउन हटाते समय कुछ विशेष छूट देने की वकालत में


जानिए मोदी सरकार को लॉकडाउन हटाते समय किस प्रकार की छूट देने की सलाह दे रहे स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ


नई दिल्ली । । कोरोना वायरस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए पीएम नरेन्‍द्र मोदी ने 21 दिनों के लॉकडाउन को बढ़ा कर 3 मई तक कर दिया था। लेकिन लॉकडाउन के कारण सारी गतिविधियां ठप्‍प होने के कारण देश को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा हैं। लॉकडाउन के कारण कंपनियों को हुए भारी नुकसान के चलते लाखों लोगों की नौकरियां खतरें में पड़ चुकी हैं। सबसे बड़ी समस्‍या गरीब और मजदूरी कर अपना जीवन-यापन करने वालों के सामने खड़ी हो चुकी हैं। लेकिन कोरोना के जोखिम के बीच लॉकडाउन में कैसी और किन लोगों को छूट दी जानी इसके लिए देश के और अंतराष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों ने पीएम नरेन्‍द्र मोदी को कुल सलाह दी हैं। माना जा रहा हैं कि मोदी सरकार लॉकडाउन खोलने की रणनीति बनाने में इन सलाहों पर गौर कर सकती हैं।


बता दें वाशिंगटन के प्रिंसटन विश्वविद्यालयऔर CDDEP टीम ने भारत के सख्त लॉकडाउन को उठाने की सिफारिश की हैं। इन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में जनसंख्‍या में युवाओं की जनसंख्‍या अधिक हैं इसलिए उनमें कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने की क्षमता अधिक हैं अगर वो संक्रमण का शिकार हो भी जाते हैं तो उससे उबरने की उनमें क्षमता हैं। प्रिंसटन और सीडीडीईपी टीम ने सलाह दी है कि अधिकांश आबादी जो कि 60 से कम उम्र के है उन्‍हें सामान्य जीवन में लौटाने की अनुमति दी गई है। हालांकि उन्‍हें भी छूट देते समय सोशल डिस्‍टेनिसंग और मास्‍क पहनने के साथ बड़े समारोहों पर प्रतिबंध लगाने की भी सलाह दी गई है।


सेंटर फॉर डिसीज़ डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने भारत की पहचान एक ऐसी जगह के रूप में की है, जहाँ यह रणनीति सफल हो सकती है, क्योंकि यूके जहां मौत का ताडंव मचा हुआ हैं वहां की अपेक्षा भारत में युवाओं का अनुपात अधिक हैं। उन्‍होंने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में लॉकडाउन में हटाते समय ऐसे लोगों को कुछ शर्तों के साथ छूट दी जानी चाहिए जिस वर्ग में कोरोना वायरस संक्रमण होने का खतरा कम हैं। उन्‍होंने ये भी बताया कि युवा भारत में कोरोना वायरस से उबरने की संभावनाएं अधिक है अगर वो इस संक्रमण के शिकार में आ भी जाते हैं तो उनमें इससे मौत होने का खतरा बहुत कम हैं। इसलिए वायरस के प्रसार को रोकने के लिए डिज़ाइन किए गए प्रतिबंधात्मक लॉकडाउन की तुलना में कम आर्थिक तबाही और मानवीय नुकसान को कम किया जा सकता हैं।


बता दें इस रिपोर्ट के बाद विशेषज्ञों के बीच लॉकडाउन को खोले जाने को लेकर एक नई बहस शुरु हो गई है। जयप्रकाश मुलियाल जो कि एक भारतीय महामारी विज्ञानविद् हैं उन्‍होंने कहा कि कोई भी भारत जैसा देश लंबे समय तक लॉकडाउन को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। ऐसे में आप वास्तव में बुजुर्गों और बच्‍चों को छोड़ कर बाकी लोगों को लॉकडाउन से सख्‍त नियमों के साथ छुटकारा देकर प्रतिरक्षा के एक बिंदु तक पहुंचने में सक्षम हो सकते हैं। इतना ही नहीं अगर प्रतिरक्षा पर्याप्त संख्या में पहुंचती है तो प्रकोप बंद हो जाएगा और बुजुर्ग भी सुरक्षित रहेंगे। उन्होंने कहा कि वायरस को अगले सात महीनों तक नियंत्रित तरीके से चलाया जा सकता है, जिससे नवंबर तक देश के 60% लोगों को प्रतिरोधक क्षमता मिल जाएगी, और इस बीमारी को रोक दिया जाएगा।


उन्होंने कहा कि इटली जैसे यूरोपीय देशों की तुलना में वायरस फैलने से मृत्यु दर सीमित हो सकती है, जबकि भारतीय जनसंख्या का 93.5% 65 से कम है, हालांकि कोई भी मृत्यु दर टोल अनुमानों को जारी नहीं किया गया था। भारत में कई शहरों और गांवों जहां घनी आबादी है वहां उनमें कोरोना संभवता संक्रमण का पता लगाने के लिए परीक्षण किटों की कमी उन जगहों पर लॉकडाउन स्थानों में अलग तरह की सख्‍त छूट दी जाने की आवश्‍यकता है।


विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार ने अपने परीक्षण नियमों को बनाए रखा है जिससे भारत के मामलों की सही संख्या का पता चल रहा है यह बीमारी समुदाय में फैल नहीं रही है। फिर भी, जैसा कि भारत ने परीक्षण किया है, यह 20 अप्रैल तक 592 मौतों के साथ राष्ट्रव्यापी अभ्यिान के तहत 18,658 तक लाने के लिए प्रत्येक दिन अधिक मामलों का पता लगाया जा रहा है।CDDEP और एक प्रिंसटन शोधकर्ता के निदेशक, रामनयन लक्ष्मीनारायण ने कहा, 'हम भुखमरी, भूख, इस अन्य सभी सामानों के खिलाफ व्यापार बंद का सामना कर रहे हैं। कोरोनोवायरस को नियंत्रित तरीके से फैलने की अनुमति देकर।' मौतें हो सकती हैं, लेकिन यह इस तरह से बहुत छोटा होगा, और यह हमें नवंबर तक व्यापार के लिए खोल देते हैं


बता दें ये रणनीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही विवादास्पद साबित हुई है। यूनाइटेड किंगडम ने इस तरीके को अपानाया गया लेकिन सफलना न मिलने पर इस तरीके को त्‍याग दिया गया। जब अनुमानों से पता चला कि इसकी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, और अस्पतालों की पर्याप्‍त संख्‍या ही इस पर नियंत्रण ला सकती हैं। वायरस के परीक्षण में ब्रिटिश सरकार की धीमी प्रतिक्रिया के लिए उस संक्षिप्त दुराग्रह को अभी भी दोषी ठहराया जा रहा है। यहां तक ​​कि एक युवा आबादी वाले भारत जैसे देश में, अवधारणा में अंतर्निहित जोखिम हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमित होने की अनुमति देने वाले लोग अनिवार्य रूप से कई और रोगियों को अस्पतालों में लाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण देखभाल और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं का तत्काल विस्तार करना होगा कि ताकि ये समुदाय में न पहुंचने पाए। उन्‍होंने कहा कि भारत में जोखिम यह है कि भारत में वायु प्रदूषण के अलावा युवाओं में उच्च रक्तचाप और मधुमेह की बीमारी पाई जाती है जिसका अर्थ है कि वायरस से मृत्यु दर उम्मीद से अधिक हो सकती है। लोग अपने गार्ड को कम कर सकते हैं और सामाजिक दिशा-निर्देशों के पालन में विफल हो सकते हैं।