साहित्य कार: एक माँ के लाडले होने का फ़र्ज़ भला तुम निभाओगे कैसे !
माँ की ज़िंदगी के रंज-ओ-ग़म का तुम्हें कुछ एहसास ही नहीं !!
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एक माँ के ख़्वाबों का क़त्ल कर देती हैं कुछ औलादें !
एेसी औलादों से भला माँ की रूह को सुकूँ मिले तो कैसे !!
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तमाम बेदनाएं सहती हुई एक माँ बेटे के सामने मुस्कुराती है !
ताउम्र शायद ही बेटे को माँ के ग़मों का अंदाज़ा लग पाए !!
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समझो तो माँ ही ज़िंदगी की अनमोल दौलत है !
वरना माँ तो माँ है तुमसे शिकायत करेगी कैसे !!
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माँ को ताने दे - दे उसे चोट पहुँचाते रहो तुम !
एक नालायक बेटे को हक़ है ताने सुनाने का !!
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माँ का कर्ज़ बेटे से कभी अदा हो नहीं सकता !
हाँ मगर माँ की बात मानते रहो यही काफी है !!
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माँ को भी अपने बेटे पर नाज़ करने का हक़ है !
बेहतर से बेहतर कर यह हक़ अदा कर दो तुम !!
************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश ! संपर्क सूत्र - 9450489518