वरना माँ तो माँ है तुमसे शिकायत करेगी कैसे – कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

साहित्य कार: एक माँ के लाडले होने का फ़र्ज़ भला तुम निभाओगे कैसे ! 

माँ की ज़िंदगी के रंज-ओ-ग़म का तुम्हें कुछ एहसास ही नहीं !! 

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एक माँ के ख़्वाबों का क़त्ल कर देती हैं कुछ औलादें !

एेसी औलादों से भला माँ की रूह को सुकूँ मिले तो कैसे !!

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तमाम बेदनाएं सहती हुई एक माँ बेटे के सामने मुस्कुराती है ! 

ताउम्र शायद ही बेटे को माँ के ग़मों का अंदाज़ा लग पाए !!

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समझो तो माँ ही ज़िंदगी की अनमोल दौलत है !

वरना माँ तो माँ है तुमसे शिकायत करेगी कैसे !!

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माँ को ताने दे - दे उसे चोट पहुँचाते रहो तुम !

एक नालायक बेटे को हक़ है ताने सुनाने का !!

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माँ का कर्ज़ बेटे से कभी अदा हो नहीं सकता !

हाँ मगर माँ की बात मानते रहो यही काफी है !! 

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माँ को भी अपने बेटे पर नाज़ करने का हक़ है !

बेहतर से बेहतर कर यह हक़ अदा कर दो तुम !!

************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश ! संपर्क सूत्र - 9450489518

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