तेरी यादों का सिलसिला कभी रुकता नहीं !
आख़िर मैं अपनी ज़िंदगी सभालूं तो कैसे !!
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यादों का गुलदस्ता बना कर रखो मुझे ज़िंदगी में अपने !
मेरा वादा है मैं तुम्हारी हर इक समस्या सुलझा दूंगा !!
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तेरी यादों का अनमोल ख़ज़ाना छुपा रखा हूं दिल में अपने !
तुम मुझे अपना मानो या ना मानो यह तुम्हारी मर्ज़ी है !!
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हमारे पास तेरी यादों का गुलदस्ता है !
भला मैं क्यों उदास रहूं ज़माने में !!
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आओ कुछ देर ठहर जाओ मेरी यादों में तुम !
अपनी मोहब्बत का ताज बनाकर देखूं तो सही !!
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अबकी सावन में मेरी यह कोशिश रहेगी !
तुम्हारी यादों के झूले में कुछ देर रहूं मैं !!
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मुझे तुम भूल जाओ इतना आसान नहीं !
बड़े हसीन लम्हे गुज़रे हैं साथ तेरे !!
***********तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !