बड़ा अजीबोग़रीब मंज़र है इस ज़माने का !
तुम्हारी कल्पना हक़ीक़त में बदलेगी कैसे !!
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मेरी मानो कुछ दिन ठहर जाओ मेरी हवेली में तुम !
चंद दिनों में तुम्हारी कल्पना को पंख लग जाएंगे !!
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कभी-कभी मेरी बातों को गौर से सुना करो तुम !
सच कहें तुम्हारी कल्पना साकार हो जाएगी !!
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हंसते मुस्कुराते चेहरों से यह एहसास हो रहा हमको !
हमारी बरसों की कल्पना सच हो रही है धीरे-धीरे !!
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तुम्हारी कल्पना का संसार हमें झूठा लगता है !
हक़ीक़त की दुनिया आँखें खोल कर देखो !!
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अपनी कल्पना को मेरी राहों का कांटा समझने की भूल मत करना !!
तुम क्या समझते हो मैं तुम्हारी बातों में आकर अपना मक़सद भूल जाऊंगा !!
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यूं तो हर कोई अपनी कल्पना को साकार करने की सोचता है !
मगर क्या कीजिए आदमी का मुक़द्दर उसके साथ चलता है !!
***********तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !