कभी-कभी मेरी बातों को गौर से सुना करो तुम – कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

 


बड़ा अजीबोग़रीब मंज़र है इस ज़माने का !

तुम्हारी कल्पना हक़ीक़त में बदलेगी कैसे !!

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मेरी मानो कुछ दिन ठहर जाओ मेरी हवेली में तुम !

चंद दिनों में तुम्हारी कल्पना को पंख लग जाएंगे !!

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कभी-कभी मेरी बातों को गौर से सुना करो तुम !

सच कहें तुम्हारी कल्पना साकार हो जाएगी !!

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हंसते मुस्कुराते चेहरों से यह एहसास हो रहा हमको !

हमारी बरसों की कल्पना सच हो रही है धीरे-धीरे !!

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तुम्हारी कल्पना का संसार हमें झूठा लगता है !

हक़ीक़त की दुनिया आँखें खोल कर देखो !!

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अपनी कल्पना को मेरी राहों का कांटा समझने की भूल मत करना !!

तुम क्या समझते हो मैं तुम्हारी बातों में आकर अपना मक़सद भूल जाऊंगा !!

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यूं तो हर कोई अपनी कल्पना को साकार करने की सोचता है !

मगर क्या कीजिए आदमी का मुक़द्दर उसके साथ चलता है !!

***********तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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