'नई पीढ़ी' समाचार पत्र/ पत्रिका तथा देश के लेखकों पत्रकारों के प्रथम साझा मंच राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन (वाजा इंडिया) की तरफ से आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा गत दिनों सफलतापूर्वक संपन्न हुई।
इस परिचर्चा में देश- विदेश से जुड़े आयुर्वेद विशेषज्ञों, वरिष्ठ पत्रकारों, साहित्यकारों, समेत अनेक प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति रही! परिचर्चा का संचालन करते हुए वाजा इंडिया के संस्थापक महासचिव तथा नई पीढ़ी के संपादक शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि इस परिचर्चा की सबसे प्रमुख विशेषता इसका ऑनलाइन होना नहीं बल्कि इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि इस परिचर्चा को प्रमुखता से नई पीढ़ी के आगामी जड़ी-बूटी विशेषांक में प्रकाशित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जड़ी - बूटियां धरती माँ की कोख उपजती हैं और इस परिचर्चा का शुभारंभ व समापन भी मातृशक्ति की मुखारविंदों से संपन्न होगा ।
परिचर्चा की शुरुआत पिछले 36 वर्षों से चिकित्सारत डॉ नीरजा सुधांशु, बीएएमएस के वक्तव्य से हुई । उन्होंने आयुर्वेद के प्रति आम लोगों के रुझान व जडी़ बूटियों के विषय में कई महत्वपूर्ण जानकारी दी। देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने बताया कि वे कोरोना से ग्रसित हुए कि नहीं उन्हें और उनकी पत्नी को पता नहीं चला, क्योंकि वे पारंपरिक जडी़ बूटियों का सेवन लगातार कर रहे थे । जबकि उनके घर के आसपास सभी कोरोना के मरीज थे। 'कादंबिनी' के पूर्व मुख्य कापी संपादक व वैकल्पिक चिकित्सा के जानकर संत समीर ने भारत में जडी़ बूटियों को कोरोना के इलाज के लिए रामबाण बताया। उन्होंने स्वयं डेढ़ हजार कोरोना के मरीजों का देशी इलाज किया। उन्होंने आगे हल्दी, नीम और मौसम के अनुसार होने वाली जडी़ बूटियों पर जानकारी दी।
आयुर्वेद विभाग आंध्र प्रदेश सरकार के पूर्व अपर निदेशक डॉ वी एल एन शास्त्री ने कोरोना के दौरान उपयोग में आने वाली सभी आयुर्वेद की दवाइयों के नाम और विस्तार से गुण बताए। रसायनों के विषय में जानकारी दी।
इस अवसर पर पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट डॉ अनुराग वार्ष्णेय ने गिलोय,अश्वगंधा, कुचला, नीम आदि पर पतंजलि योगपीठ में हो रहे विभिन्न शोध की चर्चा की, जो आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेगी। उन्होंने बताया कि पतंजलि योगपीठ में कोरोना ही नहीं अन्य रोगों के लिए भी शोध हो रहे हैं।
राज्य सभा टीवी के पू्र्व सपादक व कृषि मामलों के विशेषज्ञ अरविंद कुमार सिंह ने आयुर्वेदिक औषधियों के बजट और किसानों को औषधीय पेड़ पौधों को उगाने के लिए प्रोत्साहित करने और स्थानीय जडी़ बूटियों के जानकारों का उपयोग करने पर विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जड़ी बूटियों के संदर्भ में वास्तव में सर्वाधिक जानकारी जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के पास है उसे संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है । फ्यूचरेक्स ग्रुप के प्रबंध निदेशक स्वामी प्रेम अन्वेशी ने शरीर की पंच धातुओं से पूर्ण संरचना के विषय में बताते हुए कहा कि भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
स्वीडन यूरोप से मानव मंदिर मिशन ट्रस्ट के निदेशक अरुण योगी जो कि एक नाड़ी विशेषज्ञ भी हैं और यूरोप अमेरिका समेत विभिन्न स्थानों पर आयुर्वेद के साथ साथ योग ध्यान भारतीय विद्या का प्रचार कर रहे हैं ने बताया कि भारतीय आयुर्वेदिक दवाओं को तथ्य के साथ लाया जाय तो निश्चित ही विदेशों में रहने वाले भारतीय और विदेशी सभी हर्बल और आयुर्वेद का प्रयोग करेंगे।
उन्होंने बताया कि विदेशों में जड़ी बूटियों के प्रति भ्रामक प्रचार है,इसे दूर किए जाने की जरूरत है।
मुंबई से आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ अशोक यादव ने कहा कि महानगरीय जीवन जहां कोरोना ने भय व्याप्त कर दिया था, लोग अस्पताल जाने को विवश हुए। ऐसे में पहले लोगों को भय मुक्त करना होगा और विश्वास दिलाना होगा कि आयुर्वेद में कोरोना का इलाज है। केरला के त्रिवेंद्रम से डॉ प्रतिभा जी बीएएमएस ने कोरोना के लिए जिन आयुर्वेदिक चिकित्सा की विविध पद्धतियों और विशेष काढ़ा का उपयोग केरला में मरीजों हेतु किया गया उसकी बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी। ओड़िशा से मनोविश्लेषक डॉ निधि गर्ग ने अपने वक्तव्य में कहा कि एक मनोविश्लेषक के रूप में सर्वप्रथम मैं सकारात्मक सोच रखने की सलाह देती हूँ। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में जड़ीबूटियों के प्रति आम जनों के मनोमस्तिष्क में
सकारात्मक रुख आया है और इस विषय में लोग जागरूक हो रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अधिवक्ता अभिलाषा पांडेय ने जडी़ बूटियों के प्रयोग के व्यवहारिक अनुभवों से साझा किया। वहीं डॉ जसमीत सिंह आईएएमएस बीएचयू ने कोरोना काल में प्रयोग की गई वनौषधियों की जानकारी दी।
अंत में धन्यवाद धन्यवाद ज्ञापित करते हुए वाजा महिला विंग कोलकाता की प्रेसिडेंट डॉ वसुंधरा मिश्र ने सभी आयुर्वेद विशेषज्ञों, विद्वानों, लेखकों और पत्रकारों को धन्यवाद दिया और कहा कि हल्दी, अजवायन, नींबू, इमली, धनिया, पोदिना, अदरक आदि ऐसी बहुत सी वस्तुएँ हमारे घरों में हमेशा उपयोग में आती हैं। आयुर्वेद में मनुष्य के प्रमुख त्रिदोष सिद्धांत वात- पित्त - कफ है, साथ ही सप्त धातु सिद्धांत हैं यानि रस रक्त मांस अस्थि शुक्र आदि हैं। इन सभी के संयोग से विश्व के समस्त प्राणी गतिशील रहते हैं जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं।
'नई पीढ़ी' और 'वाजा इंडिया' के तत्वावधान में गूगल पर हुए इस कार्यक्रम को 'नई पीढ़ी' के जड़ी-बूटी विशेषांक में प्रिंट किया जायेगा।