अपने मन मंदिर को पावन क्यों नहीं रखते -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


 मन मंदिर में वैचारिक प्रदूषण आ जाएं तो ! 

मन मंदिर की साफ-सफाई भी ज़रूरी है !! 

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तुम्हारे मन को कभी मलिन होने नहीं दूंगा ! 

मन मंदिर के एक कोने में मुझे बसाए रखो !! 

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अपने मन मंदिर में पूजा करने की इजाज़त दे दो मुझको ! 

क्या पता तुम्हारे भी मन को मेरे मन से प्रेम हो जाए !! 

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तमन्ना है तुम्हारे मन मंदिर की घंटी बजाने की !

तुम बताओ इबादत इस तरह मंजूर है तुमको !! 

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मन मंदिर का प्रसाद बांट देने से कुछ कम नहीं होगा ! 

जहाँ तक हो सके सुविचारों का प्रसाद बांटते चलो !! 

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तन के साथ-साथ मन मंदिर का श्रृंगार ज़रूरी है ज़िंदगी में ! 

मगर यह काम इतना आसान नहीं जो कर ले हर कोई !! 

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तेरे मन मंदिर में हर शाम दीपक जलाना मंजूर है मुझको ! 

शर्त है मगर मेरे मन मंदिर में एक दीपक जलाओ तुम भी !! 

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मन में गंदगी लेकर जीना अच्छा नहीं प्यारे ! 

अपने मन मंदिर को पावन क्यों नहीं रखते !! 

************************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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