सिंदूर का टीका लगा कर घूम रहे हो बड़े शौक से तुम !
सिंदूर वह सुहाग है जो सुहागिन के माथे पर जमता है !!
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सिंदूर की क़ीमत का अंदाज़ा नहीं तुमको शायद !
किसी विधवा से पूछो तो शायद जान जाओ तुम !!
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तेरे मांग में सिंदूर देखने के लिए क्या कुछ नहीं किया मैंने !
आज जब मांग में सिंदूर पड़ गया तो हमें ही पहचानती नहीं !!
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सिंदूर सिर्फ बाज़ार में बिकने वाला एक पाउडर नहीं !
सिंदूर बेशकीमती सुहाग है जिसमें बड़ी ताक़त है !!
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अपनी मांग का सिंदूर किसी और को नहीं देते !
इसे मेरी धृष्टता नहीं इसे मेरा संस्कार समझो !!
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मांग में सिंदूर भरने की रस्म पूरी कर दिया मैंने !
अब तुम्हारा भी भरोसा जग गया होगा मुझ में !!
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तेरे माथे का सिंदूर यूं ही चमकता रहे भगवन !
जीवन पथ पर बढ़ता कदम सदा खुशहाली दे !!
******************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !