तुम जा रहे हो जंगल में तो शेर बनकर जाओ -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

 मुझसे मौसम की बेवफाई का ज़िक्र क्यों करते हो ! 

आंधियों की फ़िक्र करता नहीं मैं घर से निकलने के बाद !! 

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चाहते हो अपनी बहादुरी का सबूत देना मुझे तो सुन लो ! 

आंधी चले और सफ़र में कदम ना रुके यही शर्त है मेरी !! 

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तुम्हें खुशी मिले तो मैं किसी हद तक जा सकता हूं ! 

आंधियों में भी तुम्हारे लिए घर से निकल सकता हूं !! 

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तुम चाहो तो अपने लिए कोई सुरक्षित ठिकाना ढूंढो ! 

रही बात मेरी मैं तो आंधी में भी खुश रहने का आदी हूं !! 

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तुम जा रहे हो जंगल में तो शेर बनकर जाओ ! 

आंधी का ख़ौफ़ रख जंगल में नहीं जाते प्यारे !! 

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तेज आंधी के साथ मुसलाधार बारिश नहीं देखी तुमने ! 

जन्नत का दर्शन करना चाहो तो जुलाई में मेरे गांव आना !!

******************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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