हमारी ख्वाहिशों का मोल कभी मत लगाना तुम -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

 कलम के सिपाही का किरदार निभा रहे हैं हम ! 

दुनिया कह रही है कि तुम कड़वा सच बोलते हो !! 

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मेरा ज़मीर ज़िंदा है मुफ्त लेने की ख़्वाहिश नहीं ! 

मैं कलम का सिपाही हूं मुझे तो शोहरत प्यारी है !! 

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मुझसे पूछ रहे हो तुम यह दुनिया कैसी है ! 

मैं कलम का सिपाही हूं तस्वीर दिखा दूंगा !! 

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कलम के सिपाही का फ़र्ज़ निभा दिया होता तुमने ! 

सच कहता हूं आज हमें यह मंजर नहीं देखना पड़ता !! 

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यह सच है कि तुम कलम की पूजा करते हो सदा ! 

मगर यह भी सच है कि मैं कलम का सिपाही हूं !! 

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मैं कलम का सिपाही हूं लोगों को अधिकार दिलाता हूं ! 

मैं अपने ज़मीर का सौदा किसी से कर ही नहीं सकता !! 

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हक़ीक़त में तुम्हारे शहर में अन्याय व भ्रष्टाचार का बोलबाला है ! 

सच अगर कहा जाए तो इस शहर में कलम के सिपाही अब तक सोए हैं !!

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हमारी ख्वाहिशों का मोल कभी मत लगाना तुम ! 

कलम का सिपाही हूं थक जाओगे मोल लगाते !! 

******************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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