ग़ज़लों की महफ़िल की 36वी कड़ी में दिल्ली की उदीयमान शायरा डॉ दिव्या जैन ने बिखेरे आधुनिक ग़ज़लों के कई रंग,जमकर हुई हौंसला अफजाई,जुटे रहे श्रोता

साहित्य::


वर्तमान कोरोना काल के कारण एक ओर जहाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आयी विसंगति और ठहराव का असर साहित्यिक-साँस्कृतिक क्रियाकलापों पर भी पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर साहित्यिक-साँस्कृतिक हलचलें ही इस जड़ता को तोड़ भी रही हैं। अगर विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर अभी तक रोक लगी हुई है तो दूसरी तरफ़ आभासी दुनिया में ऐसी गतिविधियों की बाढ़ सी आयी हुई है। कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है कि नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य-समारोहों का आयोजन कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायरों से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।


इसी क्रम में साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आॅनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।


"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास" की ओर से हम भारत के विभिन्न शहरों में साहित्यिक और साँस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। परंतु करोना के कारण उपजे हालात में अभी "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिये गये हैं, लेकिन आभासी दुनिया में न्यास पूर्ण सक्रिय होकर आपनी भूमिका निभा रहा है। इसीलिए "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" अपनी बहुचर्चित और समादृत साहित्यिक संस्था  "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से विगत कई महीनों से लगातार लाइव कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के नाम से बहुचर्चित यह लाइव कार्यक्रम देशभर के प्रख्यात शायरों और आम ग़ज़ल-प्रेमियों द्वारा खूब सराहा जा रहा है।


इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पवित्र शारदीय नवरात्र की प्रथम तिथि, प्रतिपदा (शनिवार, 17 अक्तूबर 2020) से लाइव@ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के कार्यक्रम में कुछ परिवर्तन लाया गया है और इसी परिवर्तन के साथ यह कार्यक्रम श्रृंखला अपने चौथे चरण में प्रवेश कर गयी है।


लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की इस कार्यक्रम श्रृंखला को नया रूप देते हुए देवीपक्ष से शुरु हुए इस चौथे चरण को "मातृ शक्ति" को समर्पित किया गया है। "स्त्री-सशक्तिकरण" की दिशा में अदब की दुनिया में किये गए एक छोटे, परंतु अनेठे प्रयास के तहत ही ऐसा निर्णय ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) ने लिया है। अतः तय किया गया है कि इस चतुर्थ चरण में सिर्फ़ शायरात को ही ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का यह प्रतिष्ठित मंच प्रदान किया जायेगा।


इसी क्रम में चतुर्थ चरण के कार्यक्रम में लाइव @ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की 36 वीं प्रस्तुति के रूप में, रवि वार,7 नवंबर 2020, शाम 4 बजे से दिल्ली की शायरा डाॅ दिव्या जैन जी ने महफ़िल के पटल पर अपनी बेहद ख़ूबसूरत आवाज़ में मुहब्बत का रंग बिखेरने वालीं नायाब ग़ज़लें सुनाई और आज की शाम को यादगार शाम बना दिया। उन्होंने लगभग डेढ़ घंटे तक अपनी मोहक अंदाज़ में और बेहद ख़ूबसूरत अंदाज में अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर दर्शकों-श्रोताओं को बाँधे रखा तथा सभी उनकी तारीफ़ में वाह वाह करते चले गये।



ठीक 4 बजे डाॅ दिव्या जैन पटल पर उपस्थित हो गईं और तबसे लेकर अगले डेढ़ घंटे एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत क़लाम सुनातीं रहीं।


जब उन्होंने अपनी ग़ज़ल:


मैं जब से कोख में आई तू सहमी सहमी क्यूँ है माँ 


मैं जब तक कोख में तेरी मुझे पूरा सुकूं है माँ।।


न हो तू मुझ पे शर्मिन्दा न दुनिया से छुपा मुझको


भरोसा वैसा रख मुझपर तुझे बेटों पे ज्यूँ है माँ।।


एवं


मुझको अब घर से निकलते हुए डर लगता है 


अब हर इक राम में रावण का बसर लगता है।।


मेरा माँ मेरे लिए डरती है जो जाऊँ मैं दूर


और मुझको मेरी माँ के लिए डर लगता है।।


अब तवक़्क़ो भी ज़माने से न कोई मुझको


यहाँ इंसान भी होने को जिगर लगता है।।


से आज के दौर की सच्चाई को उकेरने में सफल रहीं,फिर इस गजल ने


लेके परचम मेरे दामन का खड़े हैं सारे


आके फिर जिस्म पे पत्थर ये पड़े हैं सारे।।


वो नज़र आते नहीं ठंडी ख़बर होते ही


वो जो अख़बार की सुर्ख़ी में जड़ें हैं सारे।।


चढ़ी है सूली पे औरत ही हमेशा देखो


उसके किरदार के ही चिथड़े उड़े हैं सारे।।


और


परिंदों से कहो जाकर कि पर मेरे भी हैं 


कि आसमानों के साए में घर मेरे भी हैं।।


पहुँच कर मंज़िलों पे क्यूँ हो इतने इतराते


तुम्हारी राह के कुछ मतों सफ़र मेरे भी हैं।।


की भावनाओ में जैसे खो गए आगे डाॅ दिव्या जैन जी की इस खूबसूरत ग़ज़ल:


उम्र रोककर मुझे मेरा हाल पूछती 


ख़ौफ़ मौत का नहीं है क्यूँ सवाल पूछती।।


क्या है खोया पाया क्या माँगती है सब हिसाब


थी उरूज ज़िंदगी या ज़वाल पूछती।।


और


देखते देखते मैं कितनी बड़ी हो गई हूँ


गुज़रे लम्हों की मुसलसल सी घड़ी हो गई हूँ।।


सामने भी किसी को अब में नहीं आती नज़र


जैसे मैं चीज़ कोई घर में पड़ी हो गई हूँ।।


लोगो को दिव्या जैन जी की सोच की गहराई में उतरने का मौका मिला और फिर इस गजल ने


चलो ए मौत चलो आज मेरे घर आओ


कि शब के बाद मेरी बन के तुम सहर आओ।।


न रुक के देना है दस्तक न बैठना है तुम्हें


रहूँगी पूरी मैं तैयार जिस पहर आओ।।


तथा


ज़िंदगी क्या रही बस आना रहा जाना रहा


दासतां गुज़री हुई भूला सा अफ़साना रहा।।


कितने किरदारों से होकर यहाँ से गुजरी हूँ


और वजूद अपना ही फिर अपने से बेगाना रहा।।


की भी काफ़ी सराहना हुई। और फिर महफ़िल उरूज पर पहुंच गई


अगर डॉ दिव्या जैन जी की उपलब्धियों और पर चर्चा करे तो निसंदेह कहा जा सकता है कि ऊपर वाला बहुत कम लोगो पर इतना मेहरबान होता है। माँ सरस्वती की कृपा दिव्या जी पर ज़बर्दस्त है, यें न सिर्फ़ बेहतरीन शेर कहती हैं बल्कि इनका शैक्षणिक रिकॉर्ड भी क़ाबिल ए फ़ख़्र है इन्हे तमाम पुरूषकार मिल चुके हैजो कि निम्न है 


हायर सेकेंडरी में म.प्र. की मेरिट में आने पर अनेकानेक सम्मान व नेहरू पुरस्कार ।


एम. एस. सी.( बॉटनी) गोल्ड मेडल।


पी.एच. डी. ( जे.आर.एफ. डिपार्टमेन्ट ऑफ टैक्नोलोजी)।


एस.आर.एफ ( सी.एस.आई.आर)


लिखने का शौक़ मुसलसल जारी रहा। स्पेस साइंस में ख़ास दिलचस्पी होने के कारण उससे संबंधित लेख प्रकाशित । बीबीसी हिंदी व उर्दू से कई पुरस्कार ।


हिंदी कविता, कहानी, नाटकों का लिखना लगातार जारी रहा।


ग़ालिब अकादमी और इगनू से उर्दू भाषा के कोर्स।ख़याबां-ग़ज़ल की पहली पुस्तक 2018 में हिंदी व उर्दू में प्रकाशित।


उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा इस पुस्तक का पूरे भारत की 2019 की बेहतरीन पुस्तकों में से एक होने का ईनाम।


NCPUL भारत सरकार द्वारा भी इस पुस्तक को विशेष इनाम और NCPUL की सभी लाइब्रेरी में सम्मिलित।


राष्ट्रीय पुस्तकालयों में सम्मिलित।


रेख़्ता की ई-लाइब्रेरी में सम्मिलित।


Rekhta.org के शायरों की फ़ेहरिस्त और मुख्य पेज में दिव्या जैन का नाम शामिल ।


ज़ी सलाम टी.वी.पर दिव्या जैन पर विशेष कार्यक्रम व इंटरव्यू।


टीवी 18 उर्दू पर आधे घंटे का विशेष कार्यक्रम।


हॉट केक स्टूडियो पर आधे घंटे का इंटरव्यू।


राष्ट्रीय समाचारपत्र ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में विशेष फ़ीचर।


स्टार टीवी आई पी से ग़ज़लों का लगातार प्रसारण।


ग़ालिब अकादमी की ‘जहाने-ग़ालिब’ में अशआर सम्मिलित।


राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं , अख़बारों में रचनाएँ प्रकाशित।


ग़ालिब अकादमी की ग़ज़ल प्रतियोगिताओं के निर्णायक मंडल में।


अनगिनत मुशायरे, कवि सम्मेलनों, नशिस्तों में शिरकत।


दो ग़ज़ल की किताबें प्रकाशन को तैयार।


अन्य शायरों की दो ग़ज़ल की किताबों व एक कुल्लियात का संपादन कार्य जारी।


सच कहें तो आदरणीया डाॅ दिव्या जैन जी द्वारा पढ़ी गयी धारदार ग़ज़लों से महफ़िल का वातावरण बेहद जीवंत हो गया और बार-बार पेज पर तालियों की बौछार होती रही तथा कैसे डेढ़ घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। मंत्रमुग्ध होकर हम सभी उन्हें जी भर के सुनते रहे, पर दिल है कि भरा नहीं। 


इस तरह कहा जा सकता है कि अपनी धारदार शैली में अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर डाॅ दिव्या जैन जी ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया, यानी कि महफ़िल लूट ली।


 शायरा डाॅ दिव्या जैन जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 


https://m.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1546491132201812/


   लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही दर्शक-श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की 36 वीं कड़ी के रूप में डाॅ दिव्या जैन जी जब तक अपनी गजलें सुनातीं रही, रसिक दर्शक और श्रोतागण महफ़िल में जमे रहे।



"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) द्वारा आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से डाॅ अमर पंकज जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।


कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायरा डाॅ दिव्या जैन जी के साथ-साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हुए सबों से अनुरोध किया कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।


डाॅ अमर पंकज ने टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी साथियों,सहित आज की शायरा डाॅ दिव्या जैन जी, डॉ यास्मीन मूमल जी श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी और डाॅ पंकज कुमार सोनी जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की।