अपना हक़ पाने के लिए तुम्हें कुछ गंवाना होगा !
तुम्हारे हक़ की लड़ाई दूसरा कौन लड़ेगाआख़िर !!
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इस बिगड़े दौर में नाइंसाफी मुमकिन है अक्सर !
रही बात हक़ की तो कलेजा पत्थर का रखो !!
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तुम्हारे सिर के बालों की सफेदी बता रही है बहुत कुछ हमको !
बात रही तुम्हारे हक़ की तो यह तय है तुम्हें मिलकर रहेगा !!
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गरीबों की आह तुमसे तुम्हारी ज़िंदगी का सुकून छीन लेगी !
हक़ गरीबों का डकार कर तुम इसे पचा पाओगे कैसे !!
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ज़िंदगी में बुझदिली कभी गंवारा नहीं होगी हमको !
ताउम्र हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करते रहेंगे हम !!
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इस मुल्क में जीने का अंदाज़ अलग है लोगों का !
अपना हक़ खोकर भी जीते हैं लोग मुस्कुराकर !!
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मेरे दिल को भी तसल्ली मिल ही जाती !
काश मैं तुमको तुम्हारा हक़ दिला पाता !!
***************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !