काश मैं तुमको तुम्हारा हक़ दिला पाता -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

 


अपना हक़ पाने के लिए तुम्हें कुछ गंवाना होगा ! 

तुम्हारे हक़ की लड़ाई दूसरा कौन लड़ेगाआख़िर !! 


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इस बिगड़े दौर में नाइंसाफी मुमकिन है अक्सर ! 

रही बात हक़ की तो कलेजा पत्थर का रखो !! 

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तुम्हारे सिर के बालों की सफेदी बता रही है बहुत कुछ हमको ! 

बात रही तुम्हारे हक़ की तो यह तय है तुम्हें मिलकर रहेगा !! 

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गरीबों की आह तुमसे तुम्हारी ज़िंदगी का सुकून छीन लेगी ! 

हक़ गरीबों का डकार कर तुम इसे पचा पाओगे कैसे !! 

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ज़िंदगी में बुझदिली कभी गंवारा नहीं होगी हमको ! 

ताउम्र हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करते रहेंगे हम !! 

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इस मुल्क में जीने का अंदाज़ अलग है लोगों का !

अपना हक़ खोकर भी जीते हैं लोग मुस्कुराकर !! 

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मेरे दिल को भी तसल्ली मिल ही जाती ! 

काश मैं तुमको तुम्हारा हक़ दिला पाता !! 

***************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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