साहित्य::वर्तमान कोरोना काल के कारण एक ओर जहाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आयी विसंगति और ठहराव का असर साहित्यिक-साँस्कृतिक क्रियाकलापों पर भी पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर साहित्यिक-साँस्कृतिक हलचलें ही इस जड़ता को तोड़ भी रही हैं। अगर विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर अभी तक रोक लगी हुई है तो दूसरी तरफ़ आभासी दुनिया में ऐसी गतिविधियों की बाढ़ सी आयी हुई है। कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है कि नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य-समारोहों का आयोजन कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायरों से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।
इसी क्रम में साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आॅनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।
"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास" की ओर से हम भारत के विभिन्न शहरों में साहित्यिक और साँस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। परंतु करोना के कारण उपजे हालात में अभी "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिये गये हैं, लेकिन आभासी दुनिया में न्यास पूर्ण सक्रिय होकर आपनी भूमिका निभा रहा है। इसीलिए "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" अपनी बहुचर्चित और समादृत साहित्यिक संस्था "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से विगत कई महीनों से लगातार लाइव कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के नाम से बहुचर्चित यह लाइव कार्यक्रम देशभर के प्रख्यात शायरों और आम ग़ज़ल-प्रेमियों द्वारा खूब सराहा जा रहा है।
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पवित्र शारदीय नवरात्र की प्रथम तिथि, प्रतिपदा (शनिवार, 17 अक्तूबर 2020) से लाइव@ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के कार्यक्रम में कुछ परिवर्तन लाया गया है और इसी परिवर्तन के साथ यह कार्यक्रम श्रृंखला अपने चौथे चरण में प्रवेश कर गयी है।
लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की इस कार्यक्रम श्रृंखला को नया रूप देते हुए देवीपक्ष से शुरु हुए इस चौथे चरण को "मातृ शक्ति" को समर्पित किया गया है। "स्त्री-सशक्तिकरण" की दिशा में अदब की दुनिया में किये गए एक छोटे, परंतु अनेठे प्रयास के तहत ही ऐसा निर्णय ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) ने लिया है। अतः तय किया गया है कि इस चतुर्थ चरण में सिर्फ़ शायरात को ही ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का यह प्रतिष्ठित मंच प्रदान किया जायेगा।
इसी क्रम में चतुर्थ चरण के कार्यक्रम में लाइव @ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की 32 वीं प्रस्तुति के रूप में, रविवार,18 अक्टूबर 2020, शाम 4 बजे से जमुई (बिहार) की शायरा डाॅ नूतन सिंह जी ने महफ़िल के पटल पर अपनी बेहद ख़ूबसूरत आवाज़ में मुहब्बत का रंग बिखेरने वालीं नायाब ग़ज़लें सुनाई और आज की शाम को यादगार शाम बना दिया। उन्होंने लगभग सवा घंटे तक अपनी मोहक अंदाज़ में और बेहद ख़ूबसूरत स्वर में तरन्नुम में अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर दर्शकों-श्रोताओं को बाँधे रखा तथा सभी उनकी तारीफ़ में वाह वाह करते चले गये।
ठीक 4 बजे डाॅ नूतन सिंह साहिबा पटल पर उपस्थित हो गईं और तबसे लेकर अगले सवा घंटे तक एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत क़लाम सुनातीं रहीं।
जब उन्होंने अपनी ग़ज़ल:
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हौसला मैं जवान रखती हूँ,
अपनी मुट्ठी में जान रखती हूँ।
आदि शक्ति की हूँ हसीं शहकर,
मिस्ले गौरी की शान रखती हूँ।
और
सामने जब भी आइना रखो,
मौसमे दिल भी तो हरा रखो।
कब ज़रूरत किसी की पड़ जाये,
सबसे तुम भी तो राब्ता रखो।
सुनाया तो महफ़िल में लोग झूम उठे फिर नूतन जी की इस ग़ज़ल:
ज़माने की हर चीज़ में दिलकशी है,
मगर ये ज़माना भी ख़ुद मतलबी है।
ये 'नूतन'चरागे मोहब्बत जलाओ,
यहाँ हर तरफ रौशनी की कमी है।
तथा
मंज़िलें दूर सही ज़ारी सफर रखती हूँ,
कौन कैसा है यहाँ इसकी ख़बर रखती हूँ।
दुश्मने जाँ मेरा लोहे का बना है तो क्या है,
मैं भी लोहे को गलाने का हुनर रखती हूँ।
ने तो लोगो को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि डाॅ नूतन सिंह जी हिंदी उर्दू की गजलों में पूर्णतया पारंगत है फिर इस ग़ज़ल ने तो
काम अच्छा ही शामो सहर कीजिए,
ज़िन्दगी एक सफ़र है सफ़र कीजिए।
नाम "नूतन" माँ दुर्गा का लेते हुए,
जब ख़ुशी दर पे आये तो घर कीजिए।
और
ज़रूरत की अलग बातें मोहब्बत का अलग आलम,
ज़रूरत भूख होती है मोहब्बत ज़िन्दगी हमदम।
की भावनाओ में जैसे खो गए आगे डाॅ नूतन सिंह जी की इस खूबसूरत ग़ज़ल:
राब्ता हो गया बहारों से,
दिल भला क्यों लगायें ख़ारों से।
ज़िन्दगी हो गई मुसीबत अब,
ज़हर मिलता है आबशारों से।
फायदा क्या है बोलने से अब,
काम चलता हो जब इशारों से।
और
रब का जब सर पे साया है,
फिर क्यों बन्दे घबड़ाया है।
सब कुछ मिल जाता है उसको,
क़िस्मत लेकर जो आया है।
की भी काफ़ी सराहना हुई। और फिर महफ़िल उरूज पर पहुंच गई
सच कहें तो आदरणीया डाॅ नूतन सिंह जी द्वारा पढ़ी गयी धारदार ग़ज़लों से महफ़िल का वातावरण बेहद जीवंत हो गया और बार-बार पेज पर तालियों की बौछार होती रही तथा कैसे एक घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। मंत्रमुग्ध होकर हम सभी उन्हें जी भर के सुनते रहे, पर दिल है कि भरा नहीं।
इस तरह कहा जा सकता है कि अपनी धारदार शैली में अपनी बेहतरीन ग़ज़लें सुनाकर डाॅ नूतन सिंह जी ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया, यानी कि महफ़िल लूट ली।
शायरा नूतन जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें
https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1527692007415058/
लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही दर्शक-श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की 32 वीं कड़ी के रूप में डाॅ नूतन सिंह जी जब तक अपनी गजलें सुनातीं रही, रसिक दर्शक और श्रोतागण महफ़िल में जमे रहे।
"पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत) द्वारा आयोजित "लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से डाॅ अमर पंकज जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायरा डाॅ नूतन सिंह जी के साथ-साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हुए सबों से अनुरोध किया कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।
डाॅ अमर पंकज ने टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी साथियों, डाॅ दिव्या जैन जी , डाॅ यास्मीन मूमल जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी और डाॅ पंकज कुमार सोनी जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की।