तुम्हारे शहर की हर एक हवेली पर एतराज़ है मुझको !
पड़ोस की झोपड़ी वाला हर शाम भूखा सो जाता है जो !!
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हाथरस के उन ज़ालिमों को कानून की सजा मिले ऐसी !
हर देखने सुनने वाले ऐसे ज़ालिमों की रूह कांप जाए !!
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हाथरस की निर्भया जैसी वीभत्स घटना पर तुम्हारा मौन अच्छा नहीं !
हाथरस जैसे राक्षस घूम रहे हैं मुल्क में जहां-तहां सोचो आख़िर बचोगे कैसे !!
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हर जगह सियासत की बातें नहीं सुहाती प्यारे !
इंसानियत का तक़ाज़ा है तेरी आंख में आंसू हों !!
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अपनी शर्मनाक करतूतों से किसी कन्या का अस्तित्व मिटा चैन पाओगे कैसे !
उस अबला की आह तुम्हें हर क्षण तड़पा तुम्हारे जुल्म का हिसाब लेगी !!
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हाथरस का निर्भया कांड देखने और सुनने के बाद तुम्हें मर्द कहना सरासर झूठ होगा !
हर ऐसे मर्दों को चिन्हित कर ज़मींदोज़ कर देना अब जहां वालों का फ़र्ज़ बनता है !!
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जुल्म और हवस की शिकार मनीषा की जलती लाश और खाकी के चेहरे पर मुस्कान !
मुझे समझ में नहीं आ रहा एक रक्षक की भूमिका इतनी घृणित और शर्मनाक कैसे !!
************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !