दौरे हक़ीक़त बेशर्मी को बयां कर रही है आजकल -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

परिवार का ज़िक्र आते ही आंखों के सामने एक तस्वीर आ गई ! 


एक भरे पूरे कलियुगी परिवार में मां-बाप को वृद्धाश्रम जाना पड़ा !! 


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परिवार का एहतराम रिश्तों की संवेदनाओं से दिखता है ! 


स्वार्थ की कसौटी पर रिश्तों का व्यापार अच्छा नहीं !! 


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कोमल भावनाएं आहत हो रही हैं दुनियादारी की आड़ में ! 


परिवार की अहमियत का कोई अंदाजा ही नहीं है नई पीढ़ी को !! 


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अपनी सोच का दायरा बड़ा रखना घर के लिए अच्छा है ! 


पारिवारिक रिश्तों को संजोने में दिल बहुत साफ चाहिए !! 


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परिवार की परिभाषा में रिश्तों की एक श्रृंखला थी ! 


नए दौर में परिवार सिमट गया मियां बीवी और बच्चों में !! 


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दौरे हक़ीक़त बेशर्मी को बयां कर रही है आजकल ! 


शादी शुदा बेटों के लिए बूढ़े मां बाप की परवरिश भारी है !! 


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दुख और बीमारी में परिवार की छांव नसीब हो जाए जिसको ! 


सच कहूं तो दुख और बीमारियों को दूर होने में वक्त नहीं लगता !!


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तुम्हारे घर में खुशियों का खजाना रहे तो रहे कैसे ! 


तुम्हारे घर में परिवार की मर्यादा का हनन होता है !! 


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न जाने क्यों तुम्हारी बात मुझको समझ में आती नहीं !


तुम्हें घर और परिवार में सिर्फ़ अपना सुख समझ में आता है !!


*******************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !