जी जान से चाहता हूं मैं तुमको फिर भी !
न जाने किन बातों पर मुंह फुलाए बैठे हो !!
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भाव मिलता है तुमसे सगे भाई से कहीं ज्यादा !
अगर मैं तुम्हें अपना भाई कहूं तो बुरा क्या है !!
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तुम हमेशा अपना ही हित साधने में लगे हो !
कभी दोस्तों और पड़ोसियों पर भी नज़र रखो !!
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तुम्हारी खुशी का पैमाना आज तक समझा नहीं मैं !
हां मगर तुमसे बात करके खुशी मिलती है मुझको !!
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मालूम नहीं यार तुम किस मिट्टी के बने हो !
दुख दर्द दूसरों का भी कभी समझो तुम!!
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एक दौर था जब आदमी को आदमी से मदद मिलती थी !!
आदमी आदमी की मदद कर दे बड़ी बात है आजकल !!
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बारह व्यंजन खाकर भी नींद नहीं आती तुमको !
सोचो मजदूर नमक रोटी खाकर खर्राटे भरता है !!
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !