आने वाले दिनों को संवारने की सोचो तुम -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

वक्त के साथ बदल जाओ तुम भी ! 


वरना पहचान का संकट है सामने !! 


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लकीर के फकीर बने कब तक घूमोगे !


अपना एक ठिकाना बनाओ तो कहीं !! 


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पुराने दिनों को याद करने से फायदा नहीं ! 


आने वाले दिनों को संवारने की सोचो तुम !! 


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माहौल इस कदर हो गया है इन दिनों !! 


बेचैन हो हर आदमी ढूंढ रहा है सुकून !! 


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यहाँ बहुतेरे आदमी अब शिकार की तलाश में है ! 


बचकर रहो क्या पता किसकी नज़र है तुम पर !! 


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अब कोई भी तरकीबें काम नहीं आ रही हैं ! 


आदमी को आदमी से ही ख़तरा है इन दिनों !! 


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तुम्हारी सियासत तो मेरे समझ में आती नहीं ! 


मालूम नहीं कैसे भला होगा आम आदमी का !! 


************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


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