साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी है, ऐसा लगता है कि ज़िंदगी ठहर सी गयी है! साहित्य का क्षेत्र भी इससे दुष्प्रभाव से अछूता नहीं बचा है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर रोक लग गयी है। लेकिन कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य समारोहों को आयोजित कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायर से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।
इसी क्रम में साहित्य-संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।
इसी कार्यक्रम की छठी कड़ी के रूप में 31 जुलाई 2020 को "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से ग़ज़लों की जीवंत प्रस्तुति, मेरठ के सुप्रसिद्ध शायर डाॅ कृष्ण कुमार बेदिल की रही। डाॅ बेदिल ने लज्जत भरी आवाज़ में जब अपनी क़तआ से प्रोग्राम शुरू किया तो दर्शक-श्रोता वाह वाह कर उठे।
"पंकज गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" संस्था के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास " की ओर से हम भारत के बहुत से शहरों में साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। उसी क्रम में
ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली) की ओर से आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की छठवीं कड़ी के रूप में हिन्दुस्तान के प्रख्यात उस्ताद शायर डाॅ कृष्ण कुमार बेदिल साहेब ने जब कहा कि
ज़िहन के कोने से जब, आवाज़ देती है ग़ज़ल।
गीत बनतीं धड़कनें और साज़ देती है ग़ज़ल।
मौत को आना है लेकिन उससे पहले क्यों मरें,
ज़िन्दगी जीने का एक अंदाज़ देती है ग़ज़ल।
तो महफ़िल झूम उठी और फिर उसके बाद बारी आयी ग़ज़लों की और
नींद में भी नज़र से गुजरा है ।
ख्वाब तेरा सहर से गुजरा है।
एक दरिया जो बन गया शोला,
वो मेरी चश्मे तर से गुज़रा है।
तो फ़ेसबुक लाइव के सभी श्रोता झूम उठे
दिल मे पोशीदा खयालात का पैकर होना।
भूली बिसरी सी वही बात मुकर्रर होना।
मैं तो चलता ही रहा,जानिबे मंज़िल ता उम्र
मैंने दरियाओं से सीखा है समुन्दर होना।
सुनाया तो श्रोताओ ने दाद देने में कंजूसी नहीं की इस पुर सुकून ग़ज़ल के बाद जब
सोज़े-ग़म से पिघल गए आँसू।
चन्द शेरों में ढल गए आँसू।
लड़खड़ा तो गये थे पलकों पर,
वो तो कहिए संभल गये आँसू।
अपनी खामोशियों में गुम होकर,
आतिशे-ग़म से जल गये आँसू।
तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने
टूटे - फूटे लफ़्ज़ों के घर हो जाते।
फिर तो हम भी एक सुखनवर हो जाते।
हम जो थोड़ी और बहारें जी लेते,
पतझर के सब राज़ उजागर हो जाते।
सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी
नींद में भी नज़र से गुजरा है ।
ख्वाब तेरा सहर से गुजरा है।
एक दरिया जो बन गया शोला,
वो मेरी चश्मे तर से गुज़रा है।
तो उनके ख्यालो की गहराई में खो गए . अगली पंक्तिया आज की राजनीति की व्याख्या करने लगी श्रोताओ ने अपने आपको इसी ग़ज़ल में समाहित कर लिया
खुद से कितना दूर हूँ मैं ,जिस्मो-जाँ के साथ भी।। कारवाँ से दूर भी हूँ, कारवाँ के साथ भी।
जानते हैं मुल्क के हम रहनुमाओं का चलन, आँधियों के साथ भी हैं सायबां के साथ भी।
और फिर साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,फिर उन्होंने आज के माहौल पर कटाक्ष करती हुई सुन्दर प्रस्तुति की.
अब लोग चल रहे हैं ज़माने के साथ साथ।
हम भी बदल रहे हैं ज़माने के साथ साथ।
कुछ आप अपने आप मे नर्मी दिखाइए,
पत्थर पिघल रहे हैं ज़माने के साथ साथ।
तो लोग सोचने पर मजबूर हो गई कि शायर के ख़यालात की कोई हद नहीं है और उनकी पंक्तिया दिलों को छूती हुई मालूम होने लगी और फिर एक बार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। और फिर
दिले-ख़ुद्दार पे भी एक नज़र एक नज़र।
मेरे ईसार पे भी एक नज़र एक नज़र ।
नुक़रई साज़ की झंकार में रहने वालो,
आहे-नादार पे भी एक नज़र एक नज़र।
सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया,और फिर लगातार एक के बाद एक बेहतरीन ग़ज़लों की झड़ी लगा दी
और फिर महफ़िल उरुज़ पर पहुंच गई.
डाॅ कृष्न कुमार बेदिल जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें
https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1459193117598281/
लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की छठवीं कड़ी के रूप में प्रसिद्ध शायर कृष्ण कुमार बेदिल जी जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे , रसिक दर्शक और श्रोतेगण महफ़िल में जमे रहे।
पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर डाॅ अमर पंकज जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन ने डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर आदरणीय डाॅ कृष्ण कुमार साहेब के साथ साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट किया और प्रार्थना की कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।
डाॅ अमर पंकज ने कार्यक्रम की संचालिकाओं डाॅ दिव्या जैन और डाॅ यास्मीन मूमल जी के साथ-साथ कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार और मीडिया प्रभारीगण डाॅ पंकज कुमार सोनी जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी एवं श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।