मगर कुदरत की नियति पर इतना एतबार रखो -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


ग़मों के साथ भी मुस्कुराहट है चेहरे पर ! 


बड़ी मेहरबानियां है कुदरत की मुझ पर !! 


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लोग कहते हैं कुदरत की लीला बड़ी न्यारी है ! 


कोरोना महामारी ने साबित कर दिखाया इसको !!


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कुदरत के करिश्मे को भी नकार रहे हो तुम ! 


कुदरत नाराज़ होगी तो फ़िर कहाँ जाओगे !!


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ज़िंदगी जीने का तरीका आख़िर तुम्हें कब आएगा ! 


कुदरती नियमों के साथ खिलवाड़ अच्छा नहीं होता !!


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माना कि तुम्हारा दुनिया पर कोई एतबार नहीं है ! 


मगर कुदरत की नियति पर अपना एतबार रखो !!


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कोरोना वायरस की गिरफ़्त में पूरी दुनिया आ गई ! 


लगता है कुदरत की सहनशक्ति सीमा पार कर गई !! 


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यूं तो कुदरत के नियम बड़े ही सीधे और साफ-सुथरे हैं ! 


इंसान की फ़ितरत ने ही तमाशा कर दिया कुदरत के साथ !!


************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


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