ग़ज़लों की महफ़िल की सातवीं फेस बुक लाइव में नवाबी शहर लखनऊ के शायर कुँवर कुसुमेश जी श्रोताओ के समक्ष हुए रूबरू,जमकर होती रही हौसला अफजाई


साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी है, ऐसा लगता है कि ज़िंदगी ठहर सी गयी है! साहित्य का क्षेत्र भी इससे दुष्प्रभाव से अछूता नहीं बचा है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर रोक लग गयी है। लेकिन कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य समारोहों को आयोजित कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायर से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।


इसी क्रम में साहित्य-संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।


इसी कार्यक्रम की सातवीं कड़ी के रूप में 4 अगस्त 2020 को "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से ग़ज़लों की जीवंत प्रस्तुति, लखनऊ के सुप्रसिद्ध शायर कवि कुँवर कुसुमेश जी की रही। कुँवर कुसुमेश ने लज्जत भरी आवाज़ में जब अपनी पसंदीदा ग़ज़लों से से प्रोग्राम शुरू किया तो दर्शक-श्रोता वाह वाह कर उठे।



"पंकज गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" संस्था के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास " की ओर से हम भारत के बहुत से शहरों में साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। उसी क्रम में ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली) की ओर से आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की सातवीं कड़ी के रूप में हिन्दुस्तान के नवाबों के अदबी शहर लखनऊ के प्रख्यात उस्ताद शायर कुँवर कुसुमेश साहेब ने सुनाया कि 


         ऐसा नहीं कि रस्मे-मुहब्बत नहीं रही। 


         दुनिया में सिर्फ़ आज शराफ़त नहीं रही। 


तो महफ़िल झूम उठी और फिर उसके बाद बारी आयी ग़ज़लों की और


          लोग पानी को खूब तरसे हैं। 


          तब कहीं जाके अब्र बरसे हैं। 


          देर क्यों लग रही मेरे मौला,


          ख़्वाब मेरे तो मुख़्तसर से हैं। 


पुरज़ोर आवाज में सुनाया तो फ़ेसबुक लाइव के सभी श्रोता झूम उठे 


         मेरी ग़ज़ल पे आज वो बैठे हुए हैं चुप,


         करते थे वाह वाह अभी कल की बात है। 


सुनाया तो श्रोताओ ने दाद देने में कंजूसी नहीं की इस पुर सुकून ग़ज़ल के बाद जब 


           छिपी है शय कोई तारों के पीछे। 


           ख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे। 


           मेरे महबूब तू गुम हो गया है ,


           सुकूने-दिल था दीदारों के पीछे। 


तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने 


           मैं इस ख़याल से दैरो-हरम में जाता हूँ,


           भले न काम बने इत्मीनान तो होगा।


 सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी 


          समझता नहीं खुद के आगे किसी को 


          ये क्या हो गया आजकल आदमी को 


 तो उनके ख्यालो की गहराई में खो गए . अगली पंक्तिया आज की परिस्थितियों की की व्याख्या करने लगी श्रोताओ ने अपने आपको इसी ग़ज़ल में समाहित कर लिया और इसी ग़ज़ल की अगली पंक्तिया 


          यही एक है सिर्फ़ कारण पतन का ,


           मगर कोसता आदमी ज़िन्दगी को। 


और फिर साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,क्योंकि ये पंक्तिया आज के माहौल पर कटाक्ष करती हुई लगी और लोग सोचने पर मजबूर हो गए कि शायर के ख़यालात की कोई हद नहीं है और उनकी पंक्तिया दिलों को छूती हुई मालूम होने लगी और फिर एक बार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। इसके बाद भी कई ग़ज़ल और कतआ सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया. 


उनकी किताब का कवर पेज 



कुँवर कुसुमेश जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 


https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1462372677280325/


   लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की सातवीं कड़ी के रूप में प्रसिद्ध शायर कुँवर कुसुमेश जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे , रसिक दर्शक और श्रोतेगण महफ़िल में जमे रहे।


   पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।


कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर आदरणीय डाॅ कृष्ण कुमार साहेब के साथ साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट किया और प्रार्थना की कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।


डाॅ अमर पंकज ने कार्यक्रम की संचालिकाओं डाॅ दिव्या जैन और डाॅ यास्मीन मूमल जी के साथ-साथ कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार और मीडिया प्रभारीगण डाॅ पंकज कुमार सोनी जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी एवं श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।