ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली ) की आठवीं कड़ी के मेहमां रहे सुल्तानपुर के प्रसिद्द शायर डाॅ डीएम मिश्रा,ग़ज़लों को नए अंदाज में किया प्रस्तुति,श्रोताओ ने ख़ूब हौसला अफजाई की


साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी है, ऐसा लगता है कि ज़िंदगी ठहर सी गयी है! साहित्य का क्षेत्र भी इससे दुष्प्रभाव से अछूता नहीं बचा है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर रोक लग गयी है। लेकिन कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य समारोहों को आयोजित कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायर से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।


इसी क्रम में साहित्य-संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है।



इसी कार्यक्रम की आठवीं कड़ी के रूप में 7 अगस्त 2020 को "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से ग़ज़लों की जीवंत प्रस्तुति, सुल्तानपुर के सुप्रसिद्ध शायर डाॅ डी एम मिश्रा जी की रही।डाॅ डी एम मिश्रा ने लज्जत भरी आवाज़ में जब अपनी पसंदीदा ग़ज़लों से से प्रोग्राम शुरू किया तो दर्शक-श्रोता वाह वाह कर उठे।


"पंकज गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" संस्था के अध्यक्ष डाॅ विश्वनाथ झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि "न्यास " की ओर से हम भारत के बहुत से शहरों में साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। उसी क्रम में ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली) की ओर से आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की आठवीं कड़ी के रूप में जब डाॅ डी एम मिश्रा जी ने सुनाया कि       


       है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं


       क्यो बताएं हम उन्हें हम भी ग़ज़लकारो में हैं


      धन नहीं , दौलत नहीं , ताक़त नहीं उतनी मगर


       आज़मा कर देखिए हम भी मददगारों में हैं


और 


          प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूं


          मैं प्यार के सरोवर में आग लिख रहा हूं


          मेरी जो बेबसी है उस बेबसी को समझो


          उजड़े हुए चमन को मैं बाग़ लिख रहा हूं      


तो महफ़िल झूम उठी और फिर उसके बाद बारी आयी समाज पर केंदित ग़ज़लों की और जब       


अंधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो


फटे कपड़े नहीं तन पर ग़ज़ल रेशम की कहते हो


ग़रीबों को नहीं मिलता है पीने के लिए पानी


मगर तुम तो ग़ज़ल व्हिसकी गुलाबी रम की कहते हो 


पुरज़ोर आवाज में सुनाया तो फ़ेसबुक लाइव के सभी श्रोता झूम उठे इसके बाद         


अंधेरा जब मुकद्दर बन के घर में बैठ जाता है


मेरे कमरे का रोशनदान तब भी जगमगाता है


किया जो फ़ैसला मुन्सिफ़ ने वो बिल्कुल सही लेकिन


ख़ुदा का फ़ैसला हर फ़ैसले के बाद आता है       


सुनाया तो श्रोताओ ने दाद देने में कंजूसी नहीं की इस पुर सुकून ग़ज़ल के बाद जब     


           महकती फ़ज़ा का गुमां बन गया मैं


           कभी गुल था, अब गुलिस्तां बन गया मैं


           ग़ज़ल मेरी ताक़त , ग़ज़ल ही जुनूं है


           जो गूंगे थे उनकी जुबां बन गया मैं


तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने     


         बेला ,जुही, चमेली , चंपा हरसिंगार लिख दे


         कैसे कोई शायर पतझर को बहार लिख दे


         उसको ख़ुदा ने आंखें दी हैं तो क्या इसीलिए


         उड़ती हुई धूल को सावन की फुहार लिख दे


  और    


          ग़रीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है


          सुकूं चार पल को मिला ही नहीं है


          कहां ले के जाऊं मैं फ़रियाद अपनी


          ग़रीबों का कोई ख़ुदा ही नहीं है


सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी          


मेरी सुबहों, मेरी शामों पे बुलडोज़र चला देगा


वो ज़ालिम है तो क्या यादों पे बुलडोजर चला देगा


अगर राजा हुआ सनकी तो क्या होगा रियाया का


सरों को काटकर , लाशों पे बुलडोजर चला देगा


तो उनके ख्यालो की गहराई में खो गए . अगली पंक्तिया आज की परिस्थितियों की की व्याख्या करने लगी श्रोताओ ने अपने आपको इसी ग़ज़ल में समाहित कर लिया और इस ग़ज़ल की ये पंक्तिया सुनाया       


   बनावट की हंसी अधरों पे ज़्यादा कब ठहरती है


   छुपाओ लाख सच्चाई निगाहों से झलकती है


   बहुत अच्छा हुआ जो सब्जबागों से मैं बच आया


  गनीमत है मेरे छप्पर पे लौकी अब भी फलती है और     


गांवों का उत्थान देखकर आया हूं


मुखिया का दालान देखकर आया हूं


मनरेगा की कहां मजूरी चली गयी


सुखिया को हैरान देखकर आया हूं


गांव की व्यथा बताती इस ग़ज़ल के बाद जब उन्होंने विपरीत परिस्थितियों पर आधारित ग़ज़ल 


हवा खिलाफ है लेकिन दिये जलाता हूं


हज़ार मुश्किलें हैं फिर भी मुस्कराता हूं


सलाम आंधियां करती हैं मेरे जज़्बों को


इक दिया बुझ गया तो दूसरा जलाता हूं


 सुनाया तो जैसे आज के माहौल को रेखांकित किया और फिर 


बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है


मिटे न धुंध तो फिर रोशनी हुई क्यो है


कहीं छलकते हैं सागर तो कहीं प्यास ही प्यास


तेरे निज़ाम में इतनी बड़ी कमी क्यों है


और 


कभी लौ का इधर जाना, कभी लौ का उधर जाना


दिए का खेल है तूफान से अक्सर गुज़र जाना


सुनाया तो साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,क्योंकि ये पंक्तिया आज के माहौल पर कटाक्ष करती हुई लगी और लोग सोचने पर मजबूर हो गए कि शायर के ख़यालात की कोई हद नहीं है फिर जब उन्होंने कहा कि 


बोझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है


धान की बाली, कान की बाली दोनों संग -संग बजती है


और 


अब ये ग़ज़लें मिजाज बदलेंगी


बेईमानों का राज बदलेंगी


खूब दरबार कर चुकीं ग़ज़लें


अब यही तख्त व ताज बदलेंगी


और उनकी पंक्तिया दिलों को छूती हुई मालूम होने लगी और फिर एक बार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। इसके बाद भी कई ग़ज़ल और कतआ सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया. 


डाॅ डी एम मिश्रा जी के फ़ेसबुक लाइव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 


https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1464888257028767/


 


   लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की आठवीं कड़ी के रूप में प्रसिद्ध शायर डीएम मिश्रा जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे , रसिक दर्शक और श्रोतेगण महफ़िल में जमे रहे।


 पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।


कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर आदरणीय डाॅ डीएम मिश्रा साहेब के साथ साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट किया और प्रार्थना की कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।


डाॅ अमर पंकज ने टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के सभी साथियों, डाॅ दिव्या जैन जी , डाॅ यास्मीन मूमल जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी और डाॅ पंकज कुमार सोनी जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित की।