पूर्णिमा की रात में मुस्कुराते हुए मेरे पास आओ तो सही !
अमावस की रात में तेरी मुस्कुराहट का मोल ही क्या !!
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तुम्हें लगता है कि रात में ही सारे घिनौने काम होते हैं !
जरा सोच कर बताओ दिन के उजाले में क्या नहीं होता !!
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रात के सन्नाटे में हमारी आंखों के सामने बस एक की तस्वीर होती है !
वह तस्वीर तुम हो जिसकी इबादत दिन में सारी दुनिया करती है !!
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रात का सफ़र कैसा भी हो मगर एहसास दिलाता है !
दिन का सफ़र तो कट जाता है शोर-शराबे के साथ !!
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रात का देवता बनकर लोगों के दिल में उतरना चाहते हो !
सच बताऊं तुम्हारी यह शौक तुम्हें पागल बना कर रख देगी !!
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तुम्हारी फितरत का अंजाम तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं !
रातरानी की खुशबू लेकर घूम रहे हो सरे बाज़ार तुम !!
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !