साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी, साहित्य की एक विधा कवि सम्मेलनों, मुशायरों के आयोजन पर भी इसका प्रभाव पड़ा है इसी कारण एक नया माध्यम तलाशा गया। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवि, शायर को जीवंत रूप में सुन कर आनन्द उठा सकें।24 जुलाई को4 बजे इसी माध्यम का प्रयोग कर प्रख्यात साहित्यिक संस्था गजलों की महफ़िल (दिल्ली) ने से साहित्य प्रेमियों को ग़ज़ल विधा का लुफ़्त दिलाया है
संस्था अध्यक्ष डॉ विश्वनाथ झा,पंकज गोष्ठी न्यास, से हमारे संवाददाता को बताया कि पंकज गोष्ठी न्यास की ओर से भारत के बहुत से शहरों में हम साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। उसी कार्यक्रम की चौथी कड़ी के रूप में ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली) की ओर से थी ग़ज़लों की आज की जीवंत प्रस्तुति, मुंबई की प्रसिद्ध कवियत्री और शायरा राजकुमारी राज जी की रही, अपनी मधुर आवाज में राज जी ने जब सुनाया
मेरी कश्ती को मिले कोई किनारा मौला
अपने हाथों से इसे देदे सहारा मौला
और
शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना,
मिलके ख़ुर्शीद से जज़्बात रूहानी होना
हुस्न की मय से लबालब है ग़ज़ल का साग़र,
डूबकर उसमे सुख़नवर का शराबी होना।
तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने
जिंदगी कह रही है,हँसा कीजिये;
साथ लब ही न दें गर,तो क्या कीजिये!
और फिर
तेरी तलाश में जानम कहाँ कहाँ पँहुचे,
कभी गुलों कभी काँटों के दरमियाँ पँहुचे।
सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और
शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी
पत्थरों के बीच उलझी रह गई
इक नदी की प्यास अधूरी रह गई
इक नये घर में गया सामान सब
माँ की बस तस्वीर लटकी रह गई
पर साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,फिर उन्होंने अपनी सुखनवर तसव्वुर वालीं प्रसिद्द पंक्तिया सुनाई
सुख़नवर के तसव्वुर की ग़ज़ब रफ़्तार होती है
न उसके रास्ते में हद कोई दीवार होती है
तो लोग सोचने पर मजबूर हो गई कि शायरा के ख़यालात की कोई हद नहीं है और जब उन्होंने
ख़ूबसूरत समां मरहबा मरहबा
आइये मेहरबाँ मरहबा मरहबा
एक तन्हा जजीरे में रौनक हुई
आ गई कश्तियाँ मरहबा मरहबा
और
जिनसे हाथ मिलाने निकले
लोग वही बेगाने निकले
कैसे होता दूर अँधेरा
जुगनू ही दीवाने निकले
सुनाया तो फिर एकबार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। और फिर
ख़िज़ाँ में भी सर-ए-दस्त-ए दुआ करता है़
ठूँठ पर यार कहाँ फूल खिला करता है़
इक सुराही की हिफ़ाज़त भी न तू कर पाया
अब्र से प्यास बुझाने की रज़ा करता है़
सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया,और फिर लगातार एक के बाद एक बेहतरीन ग़ज़लों की झड़ी लगा दी
बात अश्क़ों को ख़ुद ही कहने दे ।
रोक मत आज इनको बहने दे ।
दिल से गुस्ताखियाँ हुई हैं तो फ़िर,
टूटने की सज़ा भी सहने दे।
और
हुज़ूर दिल का अभी अर्ज़-ए-हाल नींद में है
ज़रा रुको अभी मेरा ख़याल नींद में है़
कोई उदास अँधेरों को इत्तेला कर दे
कि माहताब का नूर-ए-जमाल नींद में है़
सुनाया तो महफ़िल उरुज़ पर पहुंच गई.
लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की चौथी कड़ी के रूप में प्रसिद्ध शायरा राजेश कुमारी राज़ जी जब तक अपना कलाम सुनाती रहीं, रसिक दर्शक और श्रोतेगण महफ़िल में जमे रहे।
पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस कार्यक्रम का समापन कार्यक्रम की संचालिका डॉक्टर दिव्या जैन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
अंत में कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन ने शायरा राजेश कुमारी राज़ जी और सी दर्शकों श्रोताओं का आभार प्रकट किया और प्रार्थना की कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर हमारा उत्साहवर्धन करते रहें। डाॅ अमर पंकज ने कार्यक्रम की संचालिका-द्वय डाॅ दिव्या जैन और डाॅ यास्मीन मूमल जी के साथ-साथ कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार और मीडिया प्रभारीगण डाॅ पंकज कुमार सोनी जी, श्री अनिल कुमार शर्मा चिंतित जी एवं श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-शृँखला की बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।