साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी है, ऐसा लगता है कि ज़िंदगी ठहर सी गयी है! साहित्य का क्षेत्र भी इससे दुष्प्रभाव से अछूता नहीं बचा है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य-प्रेमियों और साहित्यकारों द्वारा वर्ष भर चलाये जाने वाले कवि सम्मेलनों, मुशायरों, सम्मान समारोहों समेत हर प्रकार के आयोजनों पर रोक लग गयी है। लेकिन कहते हैं न कि मनुष्य की अदम्य जीजिविषा उसे हर परिस्थिति का अनुकूलन करने में सक्षम बना देती है, सो हम सबने इस भीषण अवसाद की घड़ी में भी ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने के लिये नये-नये रास्तों की तलाश कर ली है। ज़िंदगी की इसी खोज़ का परिणाम है नवीन संचार माध्यमों का सहारा लेकर हम अपने-अपने घरों में क़ैद होते हुये भी वेबीनार या साहित्य समारोहों को आयोजित कर रहे हैं। इसीलिए हम देख पा रहे हैं कि पिछले कुछ महीनों से साहित्यिक-साँस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के निमित्त फेसबुक लाइव एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवियों-शायर से रूबरू होकर उनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।
इसी क्रम में साहित्य-संस्कृति के संवर्धन में लगी हुई ऐतिहासिक संस्था "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" भी निरंतर क्रियाशील है। "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" के तत्वावधान में चलने वाली प्रख्यात साहित्यिक संस्था "गजलों की महफ़िल (दिल्ली)" भी लगातार आॅनलाइन मुशायरों एवं लाइव कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। विगत 27 जुलाई 2020 को भी लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) श्रृंखला की पाँचवी कड़ी के रूप में साहित्य प्रेमियों को बीकानेर, राजस्थान के प्रख्यात शायर क़ासिम बीकानेरी(मोबाइल no 8561814522) की ग़ज़लों का लुफ़्त लेने का अवसर प्राप्त हुआ।
संस्था के अध्यक्ष, डॉ विश्वनाथ झा से इस सिलसिले में जब हमारे संवाददाता ने बात कि तो उन्होंने बताया कि "पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)" की ओर से भारत के विभिन्न शहरों में हम साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। उसी कार्यक्रम की पांचवी कड़ी के रूप में "ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली)" की ओर से थी ग़ज़लों की आज की जीवंत प्रस्तुति, बीकानेर(राजस्थान )के सुप्रसिद्ध शायर जनाब क़ासिम बीकानेरी की रही, लज्जत भरी आवाज़ में जब उन्होंने अपने क़तआ से प्रोग्राम शुरू किया
तक़्सीमे-मुहब्बत है ज़माने में मेरा काम
इस वास्ते 'क़ासिम अली' रखा है मेरा नाम
आए हो तो मिलकर रहो दुनिया में बहम तुम
तुम सबको मेरा आज यही एक है पैग़ाम
तो महफ़िल झूम उठी और फिर उसके बाद बारी आयी ग़ज़लों की और
मेरा ये दिल है लिख देना तू मेरी जान लिख देना
कफ़न के हर सिरे पर मेरे हिंदुस्तान लिख देना
हमें काशी से उल्फ़त है हमें का'बे से निस्बत है
सभी पर है निछावर ये हमारी जान लिख देना
तथा
सभी के दर्द की इस वास्ते दवा है ग़ज़ल
शिकस्ता दिल से जो निकली है वो सदा है ग़ज़ल
ज़रा क़रीब से देखो ग़ज़ल का हुस्नो-जमाल
चलेगा फिर ये पता कितनी ख़ुशनुमा है ग़ज़ल
सुनाया तो श्रोताओ ने दाद देने में कंजूसी नहीं की इस पुर सुकून ग़ज़ल के बाद जब
ज़मीं पे जुगनू फ़लक पर हंसी क़मर चमके
जिधर भी देखूं उजालों से रहगुज़र चमके
मेरे ख़याल को ऐसी उड़ान दे मौला
कि आसमाने-अदब पर मेरा हुनर चमक
तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने
ज़िंदगी आज मुझे लेके जहां आई है
हमसुख़न कोई नहीं बस मेरी तन्हाई है
मैं जिधर जाऊं बरसते हैं उधर ही पत्थर
दिल लगाने की अ़जब मैंने सज़ा पाई है
सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी
सता कर अपने भाई को कोई ख़ुश हो तो कैसे हो
दबाकर अपने भाई को कोई ख़ुश हो तो कैसे हो
कोई समझा दे आकर ये यहां हिंदू मुसलमां को
डराकर अपने भाई को कोई ख़ुश हो तो कैसे हो
तो भाई के प्रति प्यार देख कर लोगों की आंखे नम हो गई. अगली पंक्तिया ग़म और खुशी की व्याख्या करने लगी श्रोताओ ने अपने ग़म और खुशी भी इसी ग़ज़ल में दिखाई दी
ग़म भी है और है इक ज़रा सी ख़ुशी
ज़िंदगी, ज़िंदगी, ज़िंदगी, ज़िंदगी
या ख़ुदा देना मत बाप को बेटी के
मुफ़लिसी, मुफ़लिसी, मुफ़लिसी मुफ़लिसी पर साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,फिर उन्होंने आज के माहौल को देखते हुए ईद बकरीद दशहरा दिवाली पर लगे ग्रहण की सुन्दर प्रस्तुति की.
कैसे मुफ़लिस मनाए ईद अपनी
बढ़ती महंगाई के ज़माने में
जाने कब से उदास बैठा हूं
दर्द और ग़म के शामियाने में
तो लोग सोचने पर मजबूर हो गई कि शायर के ख़यालात की कोई हद नहीं है और उनकी पंक्तिया दिलों को छूती हुई मालूम होने लगी और फिर एक बार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। और फिर
ग़रीबों की हिमायत में कटे ये ज़िंदगी अपनी
इसी में ढूंढता हूं मैं हक़ीक़त में ख़ुशी अपनी
मुझे फिर याद आते हैं ज़माने वो मुहब्बत के
मिला इक फूल सूखा जब भी खोली डाइरी अपनी
सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया,और फिर लगातार एक के बाद एक बेहतरीन ग़ज़लों की झड़ी लगा दी
मुहब्बत के सफ़र में रास्ते दुश्वार होते हैं
जो तूफ़ानों से लड़ते हैं वही तो पार होते हैं
जो फ़ितरत है हसीनों की समझ में आ नहीं सकती
कभी तो प्यार करते हैं कभी बेज़ार होते हैं
महफ़िल उरुज़ पर पहुंच गई.
लाइव@ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के नाम से चर्चित फेसबुक के इस लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह है कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले से ही, शाम 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगते हैं और कार्यक्रम की समाप्ति तक मौज़ूद रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, महफ़िल की पांचवी कड़ी के रूप में प्रसिद्ध शायर कासिम बीकानेरी जी जब तक अपना कलाम सुनाते रहे , रसिक दर्शक और श्रोतेगण महफ़िल में जमे रहे।
पाठक निम्न लिंक पर क्लिक करके उनकी ग़ज़लों के लाइव प्रसारण देख सकते है
https://www.facebook.com/groups/1108654495985480/permalink/1455953921255534/
पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के इस कार्यक्रम का समापन टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) की ओर से आदरणीया श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
अंत में कार्यक्रम के संयोजक और ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के एडमिन ने डाॅ अमर पंकज ने लाइव प्रस्तुति करने वाले शायर आदरणीय क़ासिम बीकानेरी साहेब के साथ साथ दर्शकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट किया और प्रार्थना की कि महफ़िल के हर कार्यक्रम में ऐसे ही जुड़कर टीम लाइव @ ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) का उत्साहवर्धन करते रहें।
डाॅ अमर पंकज ने कार्यक्रम की संचालिकाओं डाॅ दिव्या जैन और डाॅ यास्मीन मूमल जी के साथ-साथ कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार और मीडिया प्रभारीगण डाॅ पंकज कुमार सोनी जी, श्री अनिल कुमार शर्मा 'चिंतित' जी, श्रीमती रेणु त्रिवेदी मिश्रा जी एवं श्री पंकज त्यागी 'असीम' जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए उन्हें इस सफल आयोजन-श्रृंखला की बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।