ग़ज़लों की महफ़िल(दिल्ली ) द्वारा तीसरा फ़ेसबुक लाइव प्रसारण आयोजित,दिल्ली की शायरा विजय लक्ष्मी की ग़ज़लों ने श्रोताओ का मन मोह लिया


साहित्य:: वर्तमान कोरोना काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी विसंगति आ चुकी, साहित्य की एक विधा कवि सम्मेलनों, मुशायरों के आयोजन पर भी इसका प्रभाव पड़ा है इसी कारण एक नया माध्यम तलाशा गया। फेसबुक लाइव के माध्यम से हम अपने पसंदीदा कवि, शायर को जीवंत रूप में सुन कर आनन्द उठा सकें।20 जुलाई को4 बजे इसी माध्यम का प्रयोग कर प्रख्यात साहित्यिक संस्था गजलों की महफ़िल (दिल्ली) ने से साहित्य प्रेमियों को ग़ज़ल विधा का लुफ़्त दिलाया है 


      संस्था अध्यक्ष डॉ विश्वनाथ झा,पंकज गोष्ठी न्यास, से हमारे संवाददाता को बताया कि पंकज गोष्ठी न्यास की ओर से भारत के बहुत से शहरों में हम साहित्यिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। इस कार्यक्रम की पहली कड़ी मे शरद तैलेंग जी दूसरी कड़ी में पंकज त्यागी जी रहे उसी कार्यक्रम की तीसरी कड़ी के रूप में ग़ज़लों की महफिल (दिल्ली) की ओर से थी ग़ज़लों की आज की जीवंत प्रस्तुति, बीकानेर की पली बढ़ी दिल्ली निवासिनी कवियत्री और शायरा विजय लक्ष्मी जी की रही,मधुर आवाज की मलिका विजया जी ने जब सुनाया 


 क्या है मेरी खता ये बता दीजिए


प्यार का मेरे कुछ तो सिला दीजिए


हमको आती नहीं है मुहब्बत (सनम) सुनो


प्यार करना हमें भी सिखा दीजिए


तो फ़ेसबुक लाइव से जुड़े सभी श्रोताओं ने वाह वाह की झड़ी लगा दी. आगे जब उन्होंने 


    दाग़ दिल के हमें भी दिखाओ कभी


    पास आओ कभी, मुस्कुराओ कभी


    प्यार में ज़िन्दगी भी तो आये नज़र


    रूठ कर ख़ुद सनम मान जाओ कभी


सुनाया तो एक बार फिर सभी सुरों के माधुर्य और 


शायरी की विविधता में खो से गए अगली पंक्तिया निम्न रूप में सामने आयी 


काँटों की राह पर हम दोनों ही चल रहे हैं


कुछ तुम बदल रहे हो, कुछ हम बदल रहे हैं


पर साथियों ने तालियों और लाईक से फेसबुक पेज भर दिया,फिर उन्होंने इल्ज़ाम लगाती हुई पंक्तिया सुनाई 


    बनाना वो दिवाना चाहते हैं


    हमें फिर से सताना चाहते हैं


तो लोग सोचने लगे इतनी मधुर आवाज की मालिका को कौन सता सकता है और दूसरा इल्ज़ाम लगाया कि 


    आपने अपने आशियाने में


     देर कर दी हमें बुलाने में


तो फिर एकबार पेज पर तालियों की बौछार आ गई. और मंत्रमुग्ध होकर लगभग एक घंटे उन्हें हम सभी सुनते रहे पर दिल है कि भरा नहीं। 


फिर अंत में 


आजकल वो खिला सा रहता है


 आसमां भी झुका सा रहता है


सुना कर सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया,यानी कि महफ़िल लूट लिया


  इस फेसबुक लाइव कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि 4 बजे से ही श्रोता पेज पर जुटने लगे, पंकज गोष्ठी न्यास द्वारा आयोजित ये कार्यक्रम साहित्य की दुनिया में बेहद लोकप्रिय हो रहा है संयोजक डाॅ अमर पंकज, अध्यक्ष श्री विश्वनाथ झा एवं संचालिका द्वय डॉक्टर यास्मीन मामूल और डॉक्टर दिव्या जैन के संयुक्त प्रयास से ये कार्यक्रम काफी सफल रहा