डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल' के सम्मान में अदब-सराय का मुशाएरा कामयाबी से संपन्न हुआ,शायरों ने शायरी के विविध रंगों की अनुपम छटा बिखेरी


*जन्मदिन की ख़ुशियां मुबारक हो 'बेदिल'*


*रहे दूर रंजो-मुसीबत के साए*


  *गुज़ार आए 'बेदिल' सतत्तर बहारें* *ख़ुदा सौ से जा़ईद बहारें दिखाएं*


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 *दानिश मंदी से लिया फ़ने-सुख़न में काम*


*इसीलिए मकबूल है फ़ने-सुख़न में नाम*


ये शे'र जब छबड़ा के शाइर *अब्दुल सलाम मुज़्तर* ने प्रस्तुत किया तो महफ़िल में वाह-वाह की सदाएं गूंज उठी और सभी मुबारकबाद पर मुबारकबाद पेश करने लगे | मौक़ा था अदब सराय बीकानेर की जानिब से होने वाले मुशाएरा और ग़ज़ल चर्चा के कार्यक्रम *सुख़नवरी : गुफ़्तगू-ए-ग़ज़ल* की पांचवी कड़ी का | 


    अदब सराय के संस्थापक अध्यक्ष शाइर *क़ासिम बीकानेरी* ने बताया कि इस बार अदब सराय का मुशाएरा मेरठ के मोअ़तबर शाइर *डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल* के सम्मान में रखा गया | जिसमें देश के एक से बढ़कर एक बेहतरीन शाइरों और शाइरात ने हिस्सा लिया और अपने बेहतरीन कलाम से मुशाएरे को कामयाब बनाया | मुशाएरे के मुख्य अतिथि अब्दुल सलाम मुज़्तर ने डॉ. बेदिल की ता'रीफ़ में यह क़ितअ़ पेश करके उन्हें अपनी मुबारकबाद पेश की -


*जन्मदिन की ख़ुशियां मुबारक हो बेदिल*


*रहे दूर रंजो-मुसीबत के साए* 


*गुज़ार आए बेदिल सतत्तर बहारें* *ख़ुदा सौ से जा़ईद बहारें दिखाएं*


    कार्यक्रम के अध्यक्ष *डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल'* ने भाव विभोर होते हुए कहा कि अदब-सराय ने उनके सम्मान में मुशाएरा रखकर उन्हें जो इज़्ज़त बख़्शी है उसके लिए वे हमेशा अदब-सराय के शुक्रगुज़ार रहेंगे | संस्था अदब के क्षेत्र में और ख़ास तौर से ग़ज़ल विधा में बेहतरीन कार्य कर रही है |



 इस अवसर पर *डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल* ने अपनी उम्दा शाइरी से सब को लुत्फ़अंदोज़ कर दिया | आपके इस मतलअ़ और शे'र को भरपूर पसंद किया गया -


*हर तरफ एक तीरगी है क्या लिखूँ कैसे लिखूँ*


*क़ैद में अब रोशनी है क्या लिखूँ कैसे लिखूं।*


*उड़ गयी फूलों से ख़ुशबू,रंग फीके पड़ गए,*


*हर तरफ वीरानगी है,क्या लिखूँ कैसे लिखूँ।*


आपकी ग़ज़ल रदीफ़ पर कही ग़ज़ल के इन शे'रों पर भी भरपूर दाद मिली-


*ज़िहन के कोने से जब, आवाज़ देती है ग़ज़ल।*


*गीत बनतीं धड़कनें और साज़ देती है ग़ज़ल।*


*पांव हैं मेरे ज़मीं पर, आसमानों पर नज़र,*


*पर भी देती है मुझे, परवाज़ देती है ग़ज़ल।*


 मुशाएरे के विशिष्ट अतिथि आगरा के नौजवान शाइर *भरतदीप माथुर* ने अपनी एक से बढ़कर एक ग़ज़लें प्रस्तुत करके मुशाएरे को परवान चढ़ाया -


*मैं ज़रीना तो क्या ज़रतार नहीं दे सकता*


*जान ले लीजिए किरदार नहीं दे सकता*


*ऐसी मिट्टी की तो मिट्टी की ख़राबी तय है*


*कूज़ागर तू जिसे आकार नहीं दे सकता*


आपके कलाम में हालाते-हाज़िरा की बेहतरी अक्कासी नज़र आई -


*उजाला जानते हो तुम कहाँ ठहरा हुआ है*


*मुहाने पर तुम्हारी सोच के अटका हुआ है*


*हवा ख़ामोश शाख़ें बरहना मुर्झाई कलियाँ*


*चमन का गोशा-गोशा किस क़दर सहमा हुआ है*


मुशाएरे का आग़ाज़ रांची की शाइरा और संस्था सचिव *रेणु त्रिवेदी मिश्रा* ने ना'त शरीफ़ से करके अपनी अक़ीदत का यूं इज़हार किया -


*या मुहम्मद गर तुम्हारी हो रज़ा*


*देख लूँ मैं भी मदीने की सबा*


*शुक्रिया तेरा मेहरबानी तेरी*


*जो मिला मुझको तुम्हारी है अ़ता*


संस्था अध्यक्ष शाइर *क़ासिम बीकानेरी* की ग़ज़ल ने आज के दौर की हक़ीक़तों को सामने रखा | इन अशआ़र को भरपूर सराहना मिली-


*ये कैसा दौर है अहदे-वफ़ा कोई नहीं करता*


*हक़ीक़त है यही पर सामना कोई नहीं करता*


*ग़रीब हो जाएं गर नाराज़ तो परवाह नहीं करते*


*जो दौलतमंद हैं उनको ख़फ़ा कोई नहीं करता*


अजमेर की शाइरा *डॉ. ज़ेबा फ़िज़ा* ने मुशाइरे में नया रंग भरा | आपके कलाम को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और बार-बार पढ़ने की फ़रमाइश की -


*ज़िंदगी जीने की देता है हिदायत आज भी*


*इसलिए क़ुरआं की करती हूं तिलावत आज भी*


*जो भी मेरे घर में हैं वो सब ख़ुदा का फ़ज़्ल ह*ै 


*घर के दरवाजे पे लिखी है इबारत आज भी*


झांसी के बेहतरीन शाइर *अब्दुल जब्बार 'शारिब'* ने अपनी ग़ज़ल के बेहतरीन प्रस्तुतीकरण से माहौल को ग़ज़ल की ख़ुश्बू से सराबोर करते हुए श्रोताओं की भरपूर दाद लूटी -


*ये कैसा है मौसम ये ख़िज़ां आई है कैसी*


*अफ़सुरदा सभी गुल हैं चमन कांप रहा है*


*इज़हारे तख़्ययुल पे हैं पाबंदियां जब से*


*हर एहले-ज़बाँ, एहले-सुख़न कांप रहा है*


 मेहंदी नगर सोजत के वरिष्ठ शायर *अब्दुल समद 'राही'* ने अपनी ग़ज़ल की महक से माहौल को महका दिया | सभी ने आप की ग़ज़ल की दिल खोलकर ता'रीफ़ की -


*हुनर मैंने भी सीखा है सितम उसके उठाने का* 


*हुनर उसने भी सीखा है मुझे हरदम सताने का*


*मुझे जिस दिन से सबके सामने तुमने कहा अपना*


*नहीं उस दिन से मेरे दिल में कुछ भी डर ज़माने का* 


संस्था की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मेरठ की शाइरा *डॉ. यासमीन मूमल* की ग़ज़ल ने मुशाएरा को परवान चढ़ाया -


*गुफ़्तगू जो हुई वस्ल की रात में।*


*उसको कैसे मैं अपनी ज़ुबानी लिखूँ।।*


*डूब जाने का दिल मेरा जब भी करे।*


*ख़ुद को कश्ती लिखूँ तुमको पानी लिखूँ।।*


संस्था उपाध्यक्ष दतिया के नौजवान शाइर *दिलशेर 'दिल'* ने अपनी मुरस्सा ग़ज़ल से आज के दौर की सच्चाई को सामने लाते हुए भरपूर दाद पाई -


*क्या मिलेगा तुमको बोलो, नफरतो तक़रार से।*


*जीत लो दुनिया को यारो, अम्न से और प्यार से।।*


*रात भर मैं सो न पाया, करवटें लेता रहा,*


*इतना डर जाता हूँ मैं तो, सुब्ह के अख़बार से।।*


जोधपुर के नये लबो-लहजे के नौजवान शाइर *फ़ानी जोधपुरी* ने अपनी लाजवाब ग़ज़लें सुनाकर मुशाएरे में नई रंगत भरी | आपके कलाम को ख़ूब ख़ूब ता'रीफ़ मिली -


*किसने चाहा आँख में दरिया,क़तरा भर ही काफ़ी है*


*या'नी इस दरबार के अन्दर इक फ़रियादी काफ़ी है*


*उसकी यादें,मेरा कमरा,तन्हाई और काली रात*


*कल तक ज़िन्दा रहने को इतनी तैयारी काफ़ी है*


वरिष्ठ शाइर *किशन स्वरूप* ने अपनी ग़ज़ल में गांव छोड़कर शहर जाने वाले इंसान का दर्द बख़ूबी बयान किया -


*नतीजा छोड़ने का गांव कुछ अच्छा नहीं निकला*


*नगर की भीड़ में कोई यहां अपना नहीं निकला* 


*ज़रा सी बात थी न वो राज़ी न मैं राज़ी*


*रज़ामंदी का आपस में कोई रस्ता नहीं निकला*


मेरठ के वरिष्ठ शायर *शाहिद मिर्जा 'शाहिद'* ने अपनी बेहतरीन ग़ज़ल से ख़ूब वाहवाही लूटी -


*दर्द के पर्वत से अश्कों की नदी को* 


*मैं बहाने का बहाना चाहता हूं*


*चांद से अनबन ज़रा सी हो गई है*


*घर सितारों से सजाना चाहता हूं*


कानपुर के नौजवान शाइर *इमरान कानपुरी* की ग़ज़लों को भी ख़ूब सराहना मिली -


*जिसकी गहराईयां न हो मा'लूम*


*ऐसे दरिया को पार मत करना*


*बेच कर अपना दीन और ईमान*


*ख़ुद को तुम शर्मसार मत करना*


*अजय रस्तोगी 'अविरल'* की ग़ज़ल में इंसानियत का रंग नज़र आया जिसे ख़ूब सराहा गया -


*मेरी तक़दीर भी मुझसे कभी कुछ रूठ जाती है*


*हमारे नाम की मेहंदी भी जल्दी छूट जाती है*


*मेरी बस्ती की ये तहज़ीब अच्छी है हवेली से*


*पड़ोसी को ज़रूरत हो तो गुल्लक टूट जाती है* . अहमदाबाद के शाइर कुमार अहमदाबादी की नये अंदाज़ की ग़ज़ल को भी भरपूर पसंद किया गया - *मुस्कुराना इक हुनर है दोस्तों*


*ये हुनर सब को सिखाना चाहिए*


*हुस्न से दरखास्त है तू क़त्ल कर*


*प्यार हम को क़ातिलाना चाहिये*


कार्यक्रम में अदब सराय की तरफ से डॉ.कृष्ण कुमार बेदिल को सम्मानित किया गया | सम्मान पत्र का वाचन क़ासिम बीकानेरी ने किया | डॉ. बेदिल का परिचय डॉ. यासमीन मूमल ने प्रस्तुत किया | अंत में सब का आभार दिलशेर 'दिल' ने ज्ञापित किया | मुशाएरे का सफल संचालन क़ासिम बीकानेरी ने किया | मुशाएरे में कोटा के जी.डी. मेहरा सहित अनेक सामइन मौजूद थे, जिन्होंने शाइरों की भरपूर हौसलाअफ़ज़ाई की |