लखनऊ :- 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में विवादित ढांचा ढहाए जाने का षडयंत्र रचने के फौजदारी मामले में अब एक अहम मोड़ आने वाला है। सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत में चल रहे मुकदमे में 4 जून से दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-313 के तहत सुनवाई होगी।
इस सुनवाई में अभियुक्तों को बताया जाता है कि उनके खिलाफ अब तक की अदालती कार्यवाही में गवाहों के बयान और साक्ष्य के जरिए जो आरोप लगाए गए हैं, वह उन्हें स्वीकार करते हैं या नहीं? अगर स्वीकार नहीं करते हैं तो फिर इसके जवाब में वह प्रमाण सहित अपना पक्ष प्रस्तुत करें। इस सुनवाई के दौरान गवाह अदालत में स्वयं भी उपस्थित रह सकते हैं और उनसे वीडियो कान्फ्रेंसिंग से भी जिरह हो सकती है।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2020 तक इस मामले पर फैसला देने का आदेश दे रखा है। इस मुकदमे में कुल 35 अभियुक्त हैं जिनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, डा. मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा आदि शामिल हैं। इन अभियुक्तों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मृदुल राकेश के साथ करीब एक दर्जन अन्य अधिवक्ता लगे हुए हैं।
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से एडवोकेट मजहरूल हक सीबीआई की मदद कर रहे हैं। हालांकि एक्शन कमेटी इस मुकदमे में पक्षकार नहीं है। एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने बताया कि अदालत में चार्जशीट 1993 में दाखिल की गई थी। उसके बाद एक केस रायबरेली और एक लखनऊ की सीबीआई अदालत में चला। वर्ष 2001 में लालकृष्ण आडवाणी सहित कुछ अन्य लोगों के खिलाफ केस वापस ले लिया गया, हाईकोर्ट ने भी यही आदेश दिया। मगर वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि सभी लोगों के खिलाफ केस चलेगा। इस मुकदमे मौका-ए-वारदात पर मौजूद रहे तमाम पुलिस, प्रशासन के अफसरों और पत्रकारों की भी गवाही हुई हैं।