तेरे आंगन की हवाओं में कितनी महक है कैसे बताऊं तुमको -- तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


मेरे दिल के हर एक कोने में तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू जा बसी ! 
तेरे आंगन की हवाओं में कितनी महक है कैसे बताऊं तुमको !! 
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विरासत में घर के आंगन की फुलवारी हमको ऐसी मिली ! 
ज़िंदगी में कभी महकदार फूलों की कमी महसूस नहीं की हमने !! 
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तेरे ज़ुल्फ़ की महक ने दीवाना बना दिया इस कदर हमको ! 
बड़ा सुकून मिलता है हमें तेरी घनी ज़ुल्फ़ के साए में !! 
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तेरे महकते आंचल की सौ कसम है तुझको ! 
सिर्फ़ एक बार अपना आंचल हवा में लहरा दो !! 
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यक़ीन करो आज की शाम हमारी तुम्हारी मुलाकात मुकम्मल होगी ! 
महकते हुस्न की वादियों में आज हमें टहलने का शौक जगा है !! 
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फूलों सी महक जाएगी ज़िंदगी तेरी शर्त है एक ! 
मैं जो कहता चलूं दिल लगा तुम उसे करते चलो !! 
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चमन में ख़ुशबू बिखेरने का हुनर यदि आ ही गया है तुमको !
मेरी मानो तो बिखेर कर ख़ुशबू सबके दिलों में बस जाओ !! 
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सुनकर  इतराने लगेगी इस कदर कि उसे मनाना हो जाएगा मुश्किल ! 
भला मैं उससे कैसे कहूं कि तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू गुलों जैसी है !! 
************* तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर !


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