नयी दिल्ली - ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) के तत्वावधान और डाॅ अमर पंकज के संयोजन में दिनांक 24-05-2020 की शाम एक बार फिर ऑनलाइन मुशायरे का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस मुशायरे की खूबी यह थी कि यह अदब की दुनिया की महत्वपूर्ण संस्था "ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली)" का पहला वीडियो मुशायरा था जिसमें ज़ूम एप के माध्यम से विभिन्न राज्यों के शायर-शायरा शामिल हुए। सभी ग़ज़लकारों ने तहत या तरन्नुम में अपनी-अपनी गजलें सुना कर महफ़िल को उरूज पर पहुंचा दिया और साथ ही साथ अन्य शायरों की ग़ज़लों को सुनकर उनकी हौसला-अफ़जाई करते हुये भरपूर दाद दी।
कल की शाम को एक यादगार शाम बनाने वाले महफ़िल के इस प्रथम वीडियो मुशायरे को बड़ी क़ामयाबी हासिल हुई । इस ऑनलाइन वीडियो मुशायरे की अध्यक्षता डाॅ डी एम मिश्र ने की तथा मुशायरे के संरक्षक की भूमिका में श्री शरद तैलंग मौजूद रहे।
इस ऑनलाइन वीडियो- मुशायरे में शिरक़त करने वाले जो शोरा हज़रात मौजूद थे उनके नाम इस प्रकार से हैं:
शरद तैलंग (कोटा) जिन्होंने अपना कलाम --
यारी जो समंदर को निभानी नहीं आती
ये तय था सफी़नो में रवानी नहीं आती।।
सुनाया, वहीं मुंबई से राज कुमारी राज ने
हौसलों से यकीं से निकलेगा
इक सिकंदर हमीं से निकलेगा।।
सुना कर लोगो का दिल जीत लिया।
जब बारी आई डॉ यास्मीन खान (मेरठ) की तो उन्होंने अपनी बुलंद आवाज में
नमाज़ ए इश्क़ अदा हो नहीं सकी अबतक
तुलुए शम्स की कुछ ज़ुस्तज़ू दिखाईं दे।।
डाॅ दिव्या जैन (नई दिल्ली) ने
लफ्ज़ बिखरे रहे रात भर सेज पर
ख़्वाब उनसे बुना और ग़ज़ल हो गई।।
सुनाकर महफ़िल में रंग भर दिया।
इनके बाद बृजमोहन श्रीवास्तव साथी (ग्वालियर) जी ने अपना कलाम पेश किया।
हरदीप सिंह बिरदी ने भी मुशायरे में शिरकत किया
डॉ पंकज कुमार सोनी (बस्ती) उप्र, ने
हमारे उल्फत के हौसलों पर न ज़ुल्म इतना किया करो तुम
अभी तो मैने कहा नहीं है वफ़ा के बदले वफा करो तुम।।
सुनाकर श्रोताओं पर रंग जमाया।
दिल्ली के डॉ कौशिक मिश्र ने
यहां से वहां उछाले गए गए है
ज़रूरत में ही सिर्फ पाले गए है।।
सुनाया।
रेणु त्रिवेदी मिश्रा (राँची), झारखंड ने
हर एक परिंदे के लब पर यही गाना है
तकदीर में दाना है पर ढूंढ के लाना है।।
सुनाया।पटना की अनीता मिश्रा सिद्धि जी ने
काश उनसे मेरा कलाम हो जाए
दिल मेरा शादकाम हो जाए।।
सुनाया तो बिनोद सिन्हा जी (नई दिल्ली) ने
यहां ज़वाब सवालों की आस रखते है
यहां कुएं भी समंदर सी प्यास रखते है।।
सुनाकर महफ़िल में जान डाल दी।
इसी तरह जोधपुर के दिलीप केसानी साहब ने अपनी ग़ज़ल
मुद्दत हुई कोई कहीं ठोकर नही लगी
शायद तुम्हारे शहर में पत्थर नहीं रहे।।
सुनायी।
मुशायरे के सह-संचालक पंकज त्यागी 'असीम ' (रुड़की) के कलाम ने तो मुशायरे को उचाईयों तक पहुँचा दिया और उनके इस शेर की काफी सराहना हुई-
वें जिन्होंने झोपड़ी पर फेंकी जलती तीलिया
अब हवा चलने लगी उनके मकानों की तरफ।।
इस आनलाइन मुशायरे का सफल संचालन करते हुये क़ासिम बीकानेरी जी ने अपने उम्दा कलाम से मुशायरेा में शामिल सभी शायरों को कोट करते हुए आवाज दी और खुद भी अपनी बेहतरीन ग़ज़ल
दूरियां जो आज हैं मिट जाएँगी एक दिन सभी वो
देख लेना एक दिन हम फिर मिलेंगे इंशाअल्लाह।।
सुनाकर महफ़िल को लाजवाब कर दिया।
महफ़िल के सदर मोहतरम डाॅ डी एम मिश्र जी ने
हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ
हजाऱ मुश्किलें हैं फिर भी मुस्कराता हूँ
सुनाते हुए अपने सदारती ख़ुत्बे के संदेश को ग़ज़ल की शक़्ल दे दी ।
महफ़िल के संयोजक डॉ अमर पंकज, (दिल्ली) ने
ये अँधेरा भी छँटेगा सुर्ख होगा आसमाँ
रात लंबी है मगर बदलेगी सूरत फिर 'अमर'
सुनाकर इस भयावह दौर में भी सुनहरे भविष्य की आशा का संदेश देते हुए श्रोताओं को प्रभावित दिया। साथ ही कार्यक्रम के आयोजक की हैसियत से डॉ अमर पंकज ने सभी का एहतराम करते हुए कहा कि कार्यक्रम भविष्य में फिर से ऐसे ही आयोजित किये जाएँ, इसके लिये महफ़िल के सभी साथियों का सहयोग और आशीर्वाद चहिये। सभी साथियों ने ऐसे ही बार-बार मिलते रहने की कामना की।