क्या वेंटिलेटर,कोरोना संक्रमित मरीजों को नुकसान पहुंचा रहा है,अमरीकी विशेषज्ञों की माने तो, हा ऐसा है


नई दिल्ली । दुनियाभर में कोरोनावारस का संक्रमण तेजी से बढ़ चुका है वहीं अमेरिका में हर दिन कोविड 19 पॉजिटिव से लगभग दो हजार मौतें हो रही हैं। बता दें अमेरिका में सबसे अधिक मौत न्‍यूयार्क शहर में हो रही हैं। वहीं अब अमेरिका के विशेषज्ञों ने कोरोना संक्रमित मरीजों पर एक अध्‍ययन के बाद नया खुलासा किया हैं।


अस्पताल में भर्ती हुए COVID-19 रोगियों पर किए गए शोध पर पता चला कि जिन मरीजों की हालत बिगड़ने पर मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखा गया उनमें से अधिकांश की मौत हो गई। यहां तक कि वहां के विशेषज्ञों ने ये भी दावा किया हैं कि कोरोना संक्रमित मरीजों को वेंटीलेटर ठीक करने के बजाए अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। नॉर्थवेल हेल्थ सीओवीआईडी ​​-19 रिसर्च कंसोर्टियम ने बताया कि न्यूयॉर्क राज्य में 1 मार्च और 4 अप्रैल के बीच अस्पताल में भर्ती 5,700 कोरोना पॉजिटिव मरीजों के स्‍वास्‍थ्‍य रिकार्ड के आधार पर किए गए अध्‍ययन में ये बात सामने आई। नॉर्थवेल हेल्थ सीओवीआईडी ​​-19 रिसर्च कंसोर्टियम ने बताया कि अस्‍पताल में भर्ती 2,634 मरीज ऐसे थे जिनके इलाज के दौरान वेंटीलेटर पर नहीं रखा गया उनमें मृत्यु दर 21% थी, वहीं जिन्‍हें मैकेनिकल वेंटिलेशन पर रखा गया उनमें से 88 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई ।


मेडिकल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष और सीईओ नॉर्थवेल हेल्थ केविन ट्रेसी ने कहा कि न्यूयॉर्क में COVID-19 के प्रकोप के सामने नई प्रतिक्रिया एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। उन्‍होंने ये भी कहा कि हमारे शोध में ये निष्कर्ष निकलता हैं कि वेंटिलेटर पर कभी-कभी गंभीर सीओवीआईडी ​​ के साथ जीवन के लिए जूझ रहे रोगियों के लिए अच्छे से अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।


बता दें कि कोरोना के गंभीर मरीज जिन्‍हें सांस लेने में कठिनाई होती है उन्‍हें मैकेनिकल वेंटीलेटर पर कृतिम सांस देने की लिए रखा जाता हैं ताकि उनके फेंफड़ों को सांस लेने में मदद की जा सके। इसके लिए मरीज के गले में एक पाइप घुसेड़ा जाता है इस प्रक्रिया के लिए मरीज के गले के एक भाग को सुन्‍न किया जाता हैं। न्यूयॉर्क शहर के डॉक्टर उदित चड्ढा, जो माउंट सिनाई अस्पताल के साथ एक पारंपरिक पल्मोनोलॉजिस्ट हैं उन्‍होंने कहा कि वेंटिलेटर के उपयोग से जटिलताएं हो सकती हैं इसी को देखते हुए कुछ अस्‍पताल ने ईसीयू में भर्ती मरीजों को अंतिम संभावित क्षण तक एक वेंटीलेटर पर कोरोना रोगी को डालने में देरी करना शुरू कर दिया है जब वास्तव में जीवन-या-मृत्यु का निर्णय है। चड्ढा ने कहा कि कोरोना मरीजों को जल्दी से वेंटिलेटर पर रखने से मरीजों की हालत और बिगड़ रही थी। इसलिए अब डाक्‍टर मरीज के लिए ये प्रक्रिया अपनाने से बच रहे है।


चड्ढा ने कहा, 'हम इन रोगियों को थोड़ी अधिक हाइपोक्सिया [ऑक्सीजन की कमी] को सहन करने देते हैं। हम उन्हें और अधिक ऑक्सीजन देते हैं। जब तक वे वास्तव में उन्‍हें सांस लेने में बहुत तकलीफ नहीं होती तब तक हम उन्हें नहीं देते हैं।' 'अगर आप इसे सही तरीके से करते हैं, यदि आप किसी को वेंटिलेटर पर रखते हैं जब उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की आवश्यकता होती है और समय से पहले नहीं, तो वेंटिलेटर एकमात्र विकल्प है।'वेंटिलेटर का उपयोग अंतर्निहित बीमारी की परवाह किए बिना आमतौर पर केवल तब किया जाता है जब रोगी बेहद बीमार होते हैं, इसलिए विशेषज्ञों का मानना ​​है कि 40% से 50% रोगियों की मृत्यु वेंटिलेशन पर जाने के बाद होती है।


उन्‍होंने बताया कि मैकेनिकल वेंटिलेटर उन गंभीर मरीजों को रखा जाता हैं जिन्‍हें सांस लेने में दिक्कत होती हैं लेकिन गंभीर मरीजों के फेफड़ों में इनफेक्‍शन के कारण फ्लूएट भी भर जाता हैं। डॉक्टरों को प्रत्येक यांत्रिक सांस के साथ एक व्यक्ति के फेफड़ों में धकेलने के लिए हवा की मात्रा की सटीक गणना करनी होती है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि फेफड़े का एक बड़ा हिस्सा फ्लूएट से भरा हुआ होता है। विशेषज्ञ को हर मरीज की फेफड़ों की क्षमता के अनुसार ये वेंटीलेटर पर प्रेशर मेनटेन करना होता हैं। कोरोना मरीजों में पाया गया है कि आमतौर पर कम मात्रा की आवश्‍यकता होती हैं। अगर इस सेंटिंग में कुछ ऊंच-नीच होती है तो मरीज के फेफड़ों को और अधिक नुकसान पहुंच सकता है। खूली ने कहा कि इन रोगियों को वेंटीलेटर से जुड़ी तीव्र फेफड़ों की चोट का भी खतरा है, यांत्रिक वेंटीलेशन के दौरान फेफड़ों को ओवरफ्लिफ़ेट करने के कारण होती है। जब ये सभी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, तो आपके लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है जब आप वेंटिलेटर से मुक्त होने के लिए तैयार होते हैं। उन्‍होंने कहा कि बहुत सारे साइड इफेक्ट्स हैं और अब वे वेंटिलेटर पर हैं, इन जटिलताओं के होने की संभावना अधिक है।'


वहीं ओहायो के क्लीवलैंड क्लिनिक में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के अध्यक्ष डॉक्‍टर हसन खौली ने कहा कि ये गंभीर रूप से बीमार रोगियों की मृत्यु हो जाती है क्योंकि वे COVID-19 से इतने बीमार हैं कि उन्हें जिंदा रहने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत थी, इसलिए नहीं कि वेंटिलेटर ने उन्हें अजीब तरह से परेशान किया। उन्‍होंने कहा कि 'मुझे लगता है कि अधिकांश भाग के लिए यह वेंटिलेटर से संबंधित नहीं है। ये कहना सही नहीं होगा कि 'वे वेंटिलेटर पर मर रहे हैं और जरूरी नहीं कि वेंटिलेटर पर होने के कारण मर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि 88% मृत्यु दर विशेष रूप से अधिक हैं लेकिल गंभीर मरीजों को ही तो वेंटीलेटर पर कृतिम सांस पर रखा जाता हैं जिसमें मौत का खतरा भी अधिक होता हैं। इसके अलावा कुछ डाक्टरों ने कहा कि वेंटिलेटेड मरीजों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और कई को मनोवैज्ञानिक जटिलताओं का खतरा होता है। एक तिमाही के बाद अभिघातजन्य तनाव विकार विकसित होता है, और आधे से अधिक बाद में अवसाद ग्रस्त हो सकते हैं।