गोशाला में गायो की दुर्दशा पर खबर लिखने पर दो पत्रकारों पर एफआईआर,पत्रकार आक्रोशित


बस्ती। गो आश्रय स्थलों की व्यवस्था उजागर करने वाले दो पत्रकारों के खिलाफ मुख्य पशु चिकित्साधिकारी अश्वनी कुमार तिवारी की तहरीर पर कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है। जिन दो पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है वे गोरखपुर से प्रकाशित एक दैनिक अखबार में भानपुर व रूधौली प्रतिनिधि हैं। मिली जानकारी के अनुसार पत्रकार हेमन्त पाण्डेय और धर्मेन्द्र पाण्डेय विगत दिनों परसा लंगड़ा, कमदा (सल्टौवा), मैलानी उर्फ हिंदूनगर, लोढ़वा (रामनगर) स्थित गो आश्रय स्थल पहुंचे। 


यहां उन्होने जो देखा उसे सीडीओ के वर्जन के साथ अक्षरशः प्रकाशित किया। महकमे में गो आश्रय स्थलों की लचर व्यवस्था और शासन से मिल रहे बंजट के दुरूपयोग की खबरें इससे पहने भी कई बार छपी हैं। बेजुबानों के हक पर डाका डालने की बात न तो नई है और न ही चौकाने वाली। जनपद में बेजुआनों के इलाज की व्यवस्थायें लचर हैं। कहीं अस्पताल के लिये भवन नही है तो कहीं डाक्टर नही हैं। जहां दोनो हैं वहां डाक्टर पशुओं के इलाज के लिये जाते ही नहीं। नतीजा ये है कि पशुपालकों को निजी चिकित्सकों से इलाज करना पड़ता है, इसके लिये वे मोटी रकम भी चुकाते हैं। कई स्थानों से ऐसी शिकायत भी मिली है जहां सरकारी डाक्टर भी अच्छी खासी तनख्वाह पाते हुये भी सुविधा शुल्क लेकर पशुओं का इलाज करते हैं। कई बार खबरें प्रकाशित करने के बावजूद मनमानी पर अंकुश नही लग पाया। 


पशु अस्पतालों की ही नही गो आश्रय स्थलों की व्यवस्थायें भी लचर हैं। कहीं पानी, चारा भूसा नही, तो कहीं मानक के अनुसार रखरखाव के इंतजाम। आश्रय स्थलों पर तैनात कर्मचारी कहते हैं प्रति पशु 30 रूपया शासन से आता है, इतने में खाने का बंदोबस्त नही हो सकता। बार बार उच्चाधिकारियों के सज्ञान में लाया गया, इसके बावजूद व्यवस्था नहीं बदली। नाम न छापने की शर्त पर महकमे के कर्मचारी बताते हैं कि गो आश्रय स्थलों के लिये शासन से मिलने वाले भारी भरकम बजट में हिस्सेदारी तय है, बंची हुई रकम बेजुबानों के निवाले और इलाज पर खर्च होता है। सच्चाई उजागर करने पर मीडिया को टारगेट करना अफसरों की दुर्भावना को रेखांकत करता है। सच्चाई पर परदा डालने के लिये मुख्य पशु चिकित्साधिकारी द्वारा उठाये गये इस कदम की जितनी निंदा की जाये कम है। मामले को पत्रकार आक्रोशित हैं।