एपिडेमिक डिज़िज़ एक्ट 1897(महामारी कानून) ,अंग्रेजो ने आपदा प्रबंधन हेतु बनाया था


इस कानून का कोई संबंध आम नागरिक के सोशल मीडिया पोस्ट या कोरोना से जुड़े मैसेज फॉर्वर्ड करने से बिलकुल भी नहीं है.हालांकि एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के कारण कोरोना वायरस महामारी की गंभीरता को देखते हुए कोई भी अप्रमाणिक जानकारी साझा करने से बचना बेहतर होगा.


मार्च महीने की शुरुआत में भारत सरकार ने 123 साल पुराने अंग्रेजी हक़ूमत में बनाए गए एपिडेमिक डिज़िज़ एक्ट 1897 लागू किया था.


इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के बॉम्बे शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था.


इसमें ब्रितानी सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी.


धारा 188 इसमें महामारी के दौरान सरकार को मिलनेवाले विशेषाधिकारों का जिक्र किया गया है


सरकार के पास रेलवे या अन्य साधनों से यात्रा कर रहे लोगों की जांच करने का अधिकार है


जांच कर रहे अधिकारी को अगर किसी व्यक्ति के संक्रमित होने का शक भी होता है तो वह उसे भीड़ से अलग किसी अस्पताल या अन्य व्यवस्था में रख सकता है


सरकार किसी बंदरगाह से आ रहे जहाज या अन्य चीजों की पूरी जांच कर सकती है


कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दोषी को ६ महीने तक की कैद या १००० रुपए जुर्माना या दोनों सजाएं दी जा सकती है


आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया. ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके.
इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है. इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं.


इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है. इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है.
इस कानून की सबसे खास बात है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन ना करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है.
ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है.


भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 4421 पर पहुंच चुकी है। देश के 31 राज्यों में कोरोना के मरीज मिल चुके हैं। अब तक 114 की मौत भी हो चुकी है। इन सब के बीच कोरोना पर काबू पाने के लिए भारत सरकार कई तरह के एहतियात बरत रही है। जगह-जगह क्वारंटाइन और आइसोलेशन कैंप्स बन रहे हैं, लोगों की जांच हो रही है। इसके अलावा भारत सरकार ने देशभर में महामारी एक्ट की मदद लेने का भी निर्देश जारी किया है। बता दें कि महामारी एक्ट के तहत यूपी के आगरा जिले में पहला केस दर्ज किया गया है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार कैबिनट सेक्रेटरी राजीव गौबा की समीक्षा बैठक में ये फैसला लिया गया। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी बीमारी कानून १९८७ के सेक्शन २ के प्रावधानों की मदद लेने के लिए कहा है। इस कानून के तहत यूपी के आगरा में एक केस दर्ज भी किया जा चुका है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स ने २००९ के एक पेपर में इस कानून को ‘उपनिवेशी भारत में स्वच्छता के लिए अपनाया गया सबसे निर्दयी कानून’ बताया था।


धारा 188  कानून आज से 123साल पहले साल 1897  में बनाया गया था, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तब बॉम्बे में ब्यूबॉनिक प्लेग नामक महामारी फैली थी। जिस पर काबू पाने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने ये कानून बनाया गया था। महामारी वाली खतरनाक बीमारियों को फैलने से रोकने और इसकी बेहतर रोकथाम के लिए ये कानून बनाया था। इसके तहत तत्कालीन गवर्नर जनरल ने स्थानीय अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार दिए थे। ये कानून भारत के सबसे छोटे कानूनों में से एक है। इसमें सिर्फ चार सेक्शन बनाए गए हैं। पहले सेक्शन में कानून के शीर्षक और अन्य पहलुओं व शब्दावली को समझाया गया है। दूसरे सेक्शन में सभी विशेष अधिकारों का जिक्र किया गया है जो महामारी के समय में केंद्र व राज्य सरकारों को मिल जाते हैं। तीसरा सेक्शन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मिलनेवाले दंड-जुर्माने का जिक्र करता है। चौथा और आखिरी सेक्शन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन करनेवाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण देता है। 


 इसके अनुसार सरकार जरूरत महसूस होने पर अधिकारियों को सामान्य प्रावधानों से अलग अन्य जरूरी कदम उठाने के लिए कह सकती है। सरकार के पास रेलवे या अन्य साधनों से यात्रा कर रहे लोगों की जांच करने का अधिकार है। जांच कर रहे अधिकारी को अगर किसी व्यक्ति के संक्रमित होने का शक भी होता है तो वह उसे भीड़ से अलग किसी अस्पताल या अन्य व्यवस्था में रख सकता है। सरकार किसी बंदरगाह से आ रहे जहाज या अन्य चीजों की पूरी जांच कर सकती है, उसे डिटेन भी कर सकती है। महामारी कानून के सेक्शन ३ के तहत इसका जिक्र किया गया है। इसके अनुसार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दोषी को ६ महीने तक की कैद या १००० रुपए जुर्माना या दोनों सजाएं दी जा सकती है।