समझो तुम हमारी ज़िंदगी की प्राण वायु जैसी हो !!
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दूंगा तुम्हें पाने की ख़ातिर !!
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अपना सर्वस्व गंवाकर हमने तुम्हारी इज़्ज़त बचाई !
समझ लो कितनी कीमती हो तुम हमारी ज़िंदगी के लिए !!
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भला जो कुछ मिला है तुमको शुक्रिया करो ईश्वर का !
सर्वस्व पाने की चाहत में कहीं तुम अपना भी गंवा मत देना !!
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अब किस मुंह से दुनिया के सामने मेरी तारीफ़ करोगे तुम !
अफ़सोस है मुझको अपना सर्वस्व लुटाकर भी तेरी आबरू हम बचा न सके !!
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अपना सुकून गंवा दोगे सर्वस्व पाने की चाहत में !
मेरा मशवरा है जो कुछ मिला है खुशहाल रहो उसमें !!
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सर्वस्व है यही तुम्हारे मन का यह भ्रम है !
अच्छा होगा इसे पाने की कोशिश न करो !!
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सर्वस्व नाम की कोई चीज़ नहीं है इस दुनिया में !
लोग हैं कि इसे उसे अपना सर्वस्व माने बैठे हैं !!
***********तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !