तुम्हारे आंचल में दुनिया की हर दौलत है -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

तेरे आंचल की खुशबू बस गई है रग-रग में मेरे ! 

भला तेरे आंचल की क़ीमत मैं चुकता करूं कैसे !! 

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तेरा आंचल मेरे मन की दवा बन जाएगा ! 

शर्त है अपना आंचल हवा में लहरा दो तुम !! 

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तेरा आंचल मुझको दुआ देने के लिए काफ़ी है ! 

काश अपने आंचल में एक बार छुपा लो मुझको !! 

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तेरा आंचल बहुत क़ीमती है मेरे लिए ! 

दवा और दुआ के लिए मिली हो तुम !! 

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खुद को इतना कमजोर क्यों समझती हो ! 

तुम्हारे आंचल में दुनिया की हर दौलत है !! 

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तुम्हीं बताओ मैं तुम्हारी खूबियों का ज़िक्र करूं कैसे ! 

तुम्हारे आंचल की छांव में बड़ा सुकून मिलता है मुझको !! 

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तुम्हें हमारी खूबियों का एहसास हो जाएगा ! 

सर से जिस दिन मेरा आंचल उतर जाएगा !! 

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बड़ी कद्र करता हूं मैं तेरे आंचल की ! 

इसकी छांव में मेरे बच्चों की खुशियां हैं !! 

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कद्र क्यों नहीं करते किसी मां के आंचल की ! 

मां का आंचल ही तुम्हें इस मुक़ाम पर लाया है !! 

*****************तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !

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