दीप जलाकर गीत खुशियों के गा लेंगे !
बिगड़ा हुआ सारा काम हम बना लेंगे !
तुम हैरान क्यों हो रहे हो इस ज़माने में !
हम ज़माने को अपने अनुकूल बना लेंगे !!
*************************
मेरी ज़िंदगी का दर्द उसे समझ में आए कैसे !
गैरों का सुख उसके बिगड़े मन को भाए कैसे !
संस्कार और अनुशासन तो है ही नहीं उसमें !
उसका दिल सुकून का एहसास पाए कैसे !!
*************************
मेरी खुशी का कोई पैमाना तो समझो !
बिगड़ा है किस कदर ज़माना तो समझो !
इंसानियत का पाठ मैं सिखाना चाहूं तुमको !
मगर तुम मेरे दिल का तराना तो समझो !!
*************************
मुझे घड़ियाली आंसू बहाना नहीं आया !
किसी को मुश्किल में फंसाना नहीं आया !
ज़माने के रवैये से बहुत एतराज है हमको !
कदम चल रहे हैं फिर भी ठिकाना नहीं आया !!
*************************
हमारी ख्वाहिशों का मोल मत लगाना !
प्यार जता कर मुझसे दूरी मत बनाना !
बड़े क़ीमती हैं जज़्बात मेरे समझ लेना !
प्यार के रिश्तों को कभी ठेंगा मत दिखाना !!
****************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !