दामन रहे बेदाग तेरा क्रीम ऐसी नहीं हकीम के पास -- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

तेरे चेहरे का दाग़ तो कुछ महीनों में गायब हो जाएगा ! 


हां मगर तुम्हारे चरित्र का दाग़ ताउम्र नहीं छूटने वाला !! 


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हंसते मुस्कुराते यूं तो बड़ी शान से कटी है अब तक की उम्र मेरी ! 


जिंदगी के सफ़र में कोई दाग़ ना लगे दामन पर बस यही ख्वाहिश है !! 


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दाग़ ना लगे कोई ताउम्र आदमी की ज़िंदगी में ! 


सच कहूं जो बड़ी बात है इस दौर में बेदाग होना !! 


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नमक रोटी खाकर मुस्कुराते हुए चल दिए जहां को छोड़कर ! 


मक्कारी का सहारा नहीं लिया कभी इतने खुद्दार थे वो !! 


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बेदाग होकर महफ़िल में ठहाके लगा रहा था एक फकीर ! 


तमाम रईसजादे उसके चेहरे की मुस्कान के कायल निकले !! 


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यूं तो दुनिया की नज़र में तेरा दामन दाग़दार है ! 


मगर तू बेदाग है खुद की नज़र में यही अच्छा है !! 


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दाग़ धब्बों के लिए तो बहुत सी क्रीम है दवा खाने में ! 


दामन रहे बेदाग तेरा क्रीम ऐसी नहीं हकीम के पास !! 


***************** तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


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