तनातनी और हिंसक झड़प के बीच गलवान घाटी में 60 मीटर लंबा पुल तैयार, इसे ही रोकना चाहता था चीन


पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सेना के इंजिनीयर्स ने 60 मीटर लंबे उस पुल का निर्माण पूरा कर लिया है, जिसे चीन रोकना चाहता था. जानकारी के मुताबिक गलवान नदी पर बने इस पुल से संवेदनशील सेक्टर में भारत की स्थिति बेहद मजबूत हो गई है. इस पुल की मदद से अब सैनिक नदी वाहनों के साथ आरपार जा सकते हैं और 255 किलोमीटर लंबे स्ट्रैटिजिक डीबीओ रोड की सुरक्षा कर सकते हैं, यह सड़क दरबुक से दौलत बेग ओल्डी में भारत के आखिरी पोस्ट तक जाती है, जो काराकोरम के पास है. सेना के सूत्रों के अनुसार इस पुल की वजह से चीन बौखलाया हुआ है.


चीन की तरफ से मई में उसके सैनिकों के बड़ी संख्या में एलएसी पर आने की एक वजह यह पुल भी है, जिसे वह नहीं बनने देना चाहता था. क्योंकि चीन जानता है कि इस पुल से यहां भारत की स्थिति और भी मजबूत हो गई है.


सेना के सूत्रों के हवाले से छपी ख़बरों में कहा जा रहा है कि यह पुल गुरुवार रात को तैयार हो गया. इससे यह भी पता चलता है कि सीमा पर फॉर्मेशन इंजीनियर्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में जुटे हुए हैं और पीएलए की ओर से काम रुकवाने की तमाम कोशिशों के बावजूद बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का काम जारी रहेगा.


चार मेहराब वाला यह पुल श्योक और गलवान नदी के संगम से तीन किलोमीटर पूर्व में बना है. पट्रोलिंग पॉइंट 14 से 2 किलोमीटर पूर्व। पेट्रोलिंग पॉइंट 14 ही वह स्थान है जहां 15 जून को दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी. यह Y जंक्शन के नजदीक है, जहां गलवान नाला मुख्य नदी से मिलती है. दोनों नदी के संगम पर भारतीय सेना का बेस कैंप है जिसे '120 किमी कैंप' कहा जाता है यह डीएसडीबीओ रोड के नजदीक ही है.


रिपोर्टस के अनुसार सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''हमने तनातनी के बाद भी इस पुल पर काम जारी रखा और 15 जून को हिंसक झड़प के बावजूद काम करते रहे.''


चीन अब पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है, वह श्योक नदी तक भारत के दावे को कम करना चाहता है. यदि यह हो जाता तो चीन युद्ध की स्थिति में डीएसडीबीओ रोड को काट सकता था. इससे उसे पाकिस्तान के लिए मुर्गो से होकर रास्ता खोलने का मौका मिल जाएगा, यह बीडीओ से पहले आखिरी भारतीय गांव है.


कंक्रीट के पिलर्स पर बना यह बेली ब्रिज भारत के लिए सैन्य आवाजाही में बहुत कारगर होगा और यह भारत के रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए अहम माना जा रहा है. भारतीय सेना के वाहन अब गलवान रिवर के पार जा सकते हैं, पीएलए के अधिक आक्रामक होने की स्थिति में भारत के लिए अच्छा सैन्य विकल्प मौजूद होगा.