हिंदी माध्यम से यूपीएससी के प्रतिभागियों का भाग्य अंग्रेजी वालो के हाथो में,ये ही होते है चयन समिति के सदस्य


क्या UPSC में हिंदी माध्यम के छात्रों की दुर्दशा मुट्ठी भर लोगो के षडयंत्र के कारण है ? आज इस लेख में इसकी गहन पड़ताल की जाएगी।
यूपीएससी मतलब संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आईएएस, आईपीएस, आईएफएस जैसे प्रतिष्ठित पदों की भर्ती के लिए जाना जाता है। लेकिन बेहद दुर्भाग्य से 2011 के बाद हिंदी माध्यम और भारतीय भाषाओं के छात्रों के अंतिम चयन में भागीदारी मात्र 2% तक सिमट गई है। इसे आंकड़ों से इस प्रकार समझ सकते हैं।


विगत वर्षों में UPSC में हिंदी माध्यम के छात्रों की दुर्दशा के आंकड़े



बीजेपी के सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पिछले वर्ष राज्य सभा में एक रिपोर्ट प्रस्तुत किया। रिपोर्ट अनुसार मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशिक्षणरत 370 अधिकारियों में से मात्र 8 अधिकारी हिंदी मीडियम से थे।


उन्होंने बताया कि 2013 में हिंदी मीडियम से यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 17 % थी, जो घटकर 2018 में 2.01 फीसदी रह गई है। साल 2015 में यह आंकड़ा 4.28 % , 2016 में 3.45 %, 2017 में 4.36 % था। मतलब 2015 से 2018 के बीच हिंदी माध्यम के चयनित छात्रों की कुल संख्या औसतन 10 के आसपास रही है जो अपने आप में दुःखद मज़ाक़ है
हिंदी माध्यम के छात्रों की दुर्दशा का कारण
UPSC में हिंदी माध्यम के छात्रों की दुर्दशा का मुख्य कारण C-SAT, प्रश्नपत्रों का गुगल ट्रांसलेशन ,मुख्य परीक्षा की कॉपी को अंग्रेजी भाषा के लोगों द्वारा चेक करना और इंटरव्यू में असहज परिस्थिति का पैदा करना है।
1. C-SAT : सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट
2011 से पहले हिंदी और भारतीय भाषाओं के छात्रों की भागीदारी मुख्य परीक्षा में 50% के आसपास हुआ करती थी। टॉप रैंक में हिंदी माध्यम के छात्र हर साल अपना परचम लहराते थे। लेकिन 2011 में सी-सैट लागू हुआ और हिन्दी माध्यम के छात्रों का भविष्य तबाह हो गया।
सी-सैट के चार वर्ष की तबाही का सड़क और संसद में भारी विरोध हुआ। विरोध के कारण 2015 में सी-सैट को क्वालीफाइंग(अर्हक) बना दिया गया।


हालाँकि अर्हक बनाने के बाद भी सी-सैट में हिन्दी माध्यम के कितने छात्र हर साल फेल होते हैं आंकड़ों के अभाव में अभी भी रहस्य बना हुआ है।
2. प्रश्नपत्रों का गुगल ट्रांसलेशन
हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए हिन्दी ही गम्भीर समस्या बन गयी है। क्योंकि यूपीएससी मूल प्रश्नपत्रों को इंग्लिश में तैयार करती है और उसका मशीनी ट्रांसलेशन करके हिंदी में प्रश्नपत्र बनाया जाता है।
ट्रांसलेशन के कुछ नमूने को हँसे बिना ऐसे समझें
भारत में संविधान के संदर्भ में, सामान्य विधियों में अंतर्विस्ट प्रतिषेध अथवा निर्बंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिरोध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते।


‘वार्महोल’ से होते हुए अंतरा-मंदाकिनीय अंतरिक्ष यात्रा की संभावना की पुष्टि हुई।


यूएनसीएसी अब तक का सबसे पहला विधित: बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार विरोधी लिखत है।


इसी प्रकार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को ‘शल्यक प्रहार’ और स्टील प्लांट को इस्पात का पौधा लिखता है।


ऐसे अनगिनत शब्दों को चुन-चुनकर लाया जाता है जो समझ से परे हों जैसे, अंकीयकृत प्रजनक, विधीयन, प्रोत्कर्ष, प्रमात्रा, प्रवसन आदि।
3.मुख्य परीक्षा की कॉपी अंग्रेजी भाषा के लोग चेक करते हैं
राज्यसभा सांसद ने बताया कि मुख्य परीक्षा की कॉपी अंग्रेजी भाषा के लोग चेक करते हैं, जो हिंदी में सहज नहीं होते। इसका काफी फर्क पड़ता है। वे हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ भेदभाव करते हैं।
4.इंटरव्यू में असहजता
सांसद महोदय ने कहा कि इंटरव्यू के दौरान हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ अपमानजनक व्यवहार की शिकायतें मिल रही हैं। वास्तव में इंटरव्यू में हिन्दी माध्यम के छात्रों को अंग्रेजी भाषी छात्रों की तुलना में औसत अंक कम मिलने की हमेशा शिकायत रही है।



दुर्दशा के लिए मुट्ठी भर अंग्रेजी पढ़े अमीर लोगों का षड्यंत्र जिम्मेदार है
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तो क्या इन दुर्दशाओं के लिए मुट्ठी भर अंग्रेजी पढ़े अमीर लोगों का षड्यंत्र जिम्मेदार है ? इसे हम ऐसे उदाहरण से समझते हैं। यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में अनुशंसित छात्रों का शैक्षणिक पृष्ठभूमि इस प्रकार है-


इंजीनियरिंग- 62.02 % , विज्ञान 6.4 %, चिकित्सा विज्ञान 5.6 % और मानविकी 21.8 % , मतलब विज्ञान से लगभग 79 % थे।
सबसे बड़ी बात है कि इन छात्रों में 85% ने वैकल्पिक विषय के रूप में मानविकी को चुना।


मतलब उदाहरण से साफ है कि प्रतियोगिता मानविकी विषयों में ही होती है और यूपीएससी का सिलेबस भी मानविकी विषयों पर ही आधारित है। इसके वावजूद अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को एकतरफा फायदा यदि होती है तो इसके पीछे ऊपर बताये कारण भी जिम्मेदार है ?


माननीय सांसद द्वारा भी समस्या को अत्यंत भयावह बताया है और इसे मुठ्ठी भर लोगों के षड्यंत्र का शिकार बताया हैं। उन्होंने C-SAT को तत्काल खत्म करने की मांग की है।
सरकार और यूपीएससी क्या कर सकती है
C-SAT को समाप्त करके ,प्रश्नपत्रों को मूल रूप से हिन्दी में टाइप करके ,हिन्दी माध्यम के छात्रों की कॉपी को हिन्दी विशेषज्ञ द्वारा चेक करवाकर तथा इंटरव्यू पैनल को पारदर्शी बनाकर इस समस्या का निदान किया जा सकता है।


सरकार की मजबूत इक्षाशक्ति इस समस्या का तुरंत समाधान कर सकती है। यूपीएससी भी C-SAT को समाप्त करने के अलावा बाकी सुधार स्वंय कर सकती है।


अंत मे निष्कर्ष यही है कि छात्रों की शिकायत और माननीय सांसद द्वारा उठाये गए प्रश्न का त्वरित समाधान जरूरी है। ताकि यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित संस्था पर भरोसा बना रहे और प्रतियोगिता के लिए सभी माध्यम के छात्रों को एकसमान माहौल मिले।