अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी का टाइम्स स्क्वॉयर, जो कभी रुका नहीं. थमा नहीं. कभी उसकी रौनक कम नहीं पड़ी. मगर ये पहला मौका है जब पूरा का पूरा न्यूयॉर्क शहर घर में कैद है. वहां की तस्वीरें देखकर ऐसा लग रहा है, मानो वहां इंसानों का अकाल पड़ गया हो.
दुनिया का सबसे ताकतवर देश भी जानलेवा वायरस का शिकार है. साफ कहें तो कोरोना के कहर ने अमेरिका की कमर तोड़कर रख दी है. हर साल अमेरिका औसतन साढे 9 सौ बिलियन डॉलर यानी करीब 700 खरब रुपये अपने रक्षा बजट पर खर्च करता है ताकि इस ब्रह्मांड की कोई भी ताकत उसकी तरफ आंख उठाकर ना देख सके. यही वजह है कि अमेरिका एक सुपर पॉवर है. मगर आज 60 एनएम के इस कोरोना वायरस ने उस अमेरिका तक की चूल्हें हिला कर रख दी हैं.
अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी का टाइम्स स्क्वॉयर, जो कभी रुका नहीं. थमा नहीं. कभी उसकी रौनक कम नहीं पड़ी. मगर ये पहला मौका है जब पूरा का पूरा न्यूयॉर्क शहर घर में कैद है. वहां की तस्वीरें देखकर ऐसा लग रहा है, मानो वहां इंसानों का अकाल पड़ गया हो. क्या सड़कें. क्या चौराहे. क्या मॉल. क्या बाज़ार सब बंद हैं. यहां तक की हमेशा लोगों से गुलज़ार रहने वाले अंडरग्राउंड मेट्रो ट्रेन के स्टेशन सुनसान पड़े हैं. कोरोना वायरस का ख़ौफ़ लोगों पर इस क़दर तारी है कि कोई भी एक दूसरे को मिलने तक को राज़ी नहीं.
महज़ दो हफ्ते में 60 नैनोमीटर के दिखाई भी ना देने वाले इस वायरस ने न्यूयॉर्क शहर को अमेरिका में कोरोना का एपिसेंटर बना दिया है. अमेरिका में अब ये कोरोना का 'ग्राउंड ज़ीरो' है. अकेले न्यूयॉर्क शहर में कोरोना वायरस के इतने मरीज़ हैं कि अमरीका के दूसरे इलाक़ों के कुल संक्रमित लोगों को मिला भी दें. तो ये न्यूयॉर्क से कम ही होंगे.
बिन बुलाए और बिन बताए आई इस महामारी ने पूरी दुनिया के साथ साथ न्यूयॉर्क को भी एक पल में सिर के बल खड़ा कर कर दिया है. ठीक उसी तरह जैसे ये शहर 11 सितंबर 2001 को हो गया था. शायद उससे भी बुरी तरह. उससे भी खौफनाक. न्यूयॉर्क समेत पूरे अमेरिका में इस जानलेवा वायरस की जद में आने वालों की तादाद बहुत तेज़ी से 1.5 लाख की तरफ बढ़ रही है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है और इससे मरने वालों की तादाद चीन और ईरान के भी रिकार्ड को तोड़ देने पर आमादा है. जानकार मान रहे हैं कि इस वायरस का थर्ड फेस यानी तीसरा चरण इस शहर और पूरे अमेरिका के लिए बहुत निर्णायक और भयानक हो सकता है.
हालांकि कोरोना वायरस के तीसरे चरण से होने वाली तबाही को रोकने के लिए अमेरिका एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए है. वायरस से बचने के लिए कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. वैज्ञानिकों की टीम वैक्सीन को टेस्ट करने में बिज़ी है. और लोगों को घरों में ही रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन है ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके. मगर ये असर नाकाफी ही नज़र आ रहे हैं. इस वायरस ने वक्त का पहिया ऐसा घुमाया कि अभी तक जो अमेरिका मैक्सिको के घुसपैठियों को रोकने के लिए दीवार खड़ी कर रहा था. अब उसी के देश के लोग जान बचाने के लिए मैक्सिको की तरफ भाग रहे हैं. अब उल्टा मैक्सिको की सरकार अमेरिका से आने वाले लोगों को रोकने की कोशिश कर रही है.
करीब 33 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है. वहीं दूसरी तरफ 12 करोड़ की आबादी वाले मैक्सिको में अभी तक कोरोना के एक हज़ार से भी कम मामले ही सामने आए हैं. लिहाज़ा जान बचाने के लिए लोग मैक्सिको की तरफ भाग रहे हैं. कोरोना के बढ़ते मामले ने अमेरिका की परेशानी बढ़ा दी है. क्योंकि अब उसे भी समझ आ रहा है कि करीब डेढ लाख के नज़दीक पहुंच रहे उसके संक्रमित नागरिकों की तादाद किसी ट्रिगर से कम नहीं. जो देखते ही देखते पूरे देश को इसकी चपेट में ला सकते हैं.
इस बार अमेरिका का मुकाबला किसी आमने-सामने के दुश्मन से नहीं बल्कि वैश्विक क़यामत से है. जो बड़ी तेज़ी से यूरोपियन देशों को बर्बाद करके उसके देश में घुस चुकी है. तो क्या अमेरिका इस अदृश्य चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं? इस सवाल का जवाब है नहीं. अभी नहीं है. और कब होगा ये भी नहीं कहा जा सकता. और जब होगा तब तक कितनी देर हो चुकी होगी ये तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो ट्रंप अपने सबसे बड़े दुश्मन चीन से इस महामारी से लड़ने में मदद मांग रहे हैं.
हालांकि नोबेल विजेता और अमेरिकी वैज्ञानिक माइकेल लेविट का दावा है कि चीन की तरह अमेरिका भी इस महामारी से जल्द ही पार पा लेगा. आपको बता दें कि चीन को लेकर माइकेल लेविट का अनुमान बिलकुल सटीक था.
माइकेल लेविट के मुताबिक दुनिया कोरोना से निपटने के लिए जो तरीका अपना रही है. वही सबसे सही है. लॉकडाउन के ज़रिए ही सोशल डिस्टेंसिंग को मेनटेन किया जा सकता है.. क्योंकि कोरोना वायरस की दवा बनने में भी अभी वक्त लगेगा.
संवाददाता हरि ओम प्रकाश