मैं शहर से लौट आया तुम्हारे गांव की सूरत देखने :--- कवि तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु


तेरी मासूमियत का इलाज अब मैं  क्या बताऊं! 
बस लोगों से मिलते वक्त थोड़ा मुस्कुराया करो !! 
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नई पीढ़ी से वफ़ा की कोई उम्मीद मत करना ! 
मगर भलाई इसी में है इनसे  रिश्ता आबाद रहे !! 
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रहो किसी हाल में तुम मगर कोशिश करो मिलने की !
भरी बाजार में भी अपनों से नजरें फेरना अच्छा नहीं  !! 
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मैं शहर से लौट आया तुम्हारे गांव की सूरत देखने ! 
तुम्हारे खेतों की हरी-भरी फसलें मुझे सुकून देती हैं !! 
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बीमार होकर बिस्तर पर लेटना भी मुनासिब नहीं मुझसे ! 
बचपन से जो आदत पड़ी है फावड़ा कुदाल चलाने की !! 
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तुम्हारे शहर के हंसते मुस्कुराते चेहरों पर यकीन नहीं मुझको ! 
मुझे तो गांव की गलियों से गुजरते बूढ़ों के चेहरे याद आते हैं !! 
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हमारी होशियारी का मजाक मत करना कभी ! 
हमारी होशियारी तुम्हारी ज़िंदगी के सपने हैं !! 
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जब भी तुझे तन्हाई का दर्द सताने लगे ! 
मेरी फुलवारी में आकर गीत सुन लेना !! 
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हमें तो यूं ही शहर में आवारा फिरने की आदत है ! 
तुम चाहो तो जंगल में झोपड़ी आबाद कर लो !! 
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तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर ! मोबाइल नंबर - 9450489518


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