वीर रक्षक जाग'
शब्द सब हो रहे हैं कम्पित
स्मृतियों के असंख्य भाव गुम्फित
लेखनी मौन होने को व्याकुल
नैनों से बहता प्रेम गंगाजल
बुला रहा तुझे
हे! सीमा के रक्षक..
दीप की लौ सी फड़फड़ाती तेरे प्राणों की दुंदुभी
आकुल है अपने क्षत्रिय धर्म पालन ,
रचने को अनोखा,अद्भुत इतिहास...
तेजोमय हो रहा
पल-पल मुखमंडल
शौर्य, त्याग, प्रखर बुद्धि से रंजित,
आशा है भारत माँ का सच्चा सपूत
सहनशील, कर्मशील,
पर्वत सा धैर्यवान
उठ बैठेगा शिथिल शैय्या से ..
ले कर फिर से रुद्र अवतार
दुष्टों के गंदे इरादों को कर तार-तार
स्वयं में फूंक कर नव प्राण
अभियान अधूरे छोड़के
नहीं हो सकेगा त्राण,
हे! मनीषी महान वीर,
क़लमधारी धर न धीर
उघाड़ कर रख दे होके निर्भीक
रहस्यमयी जगत की छुपी पीर
जाग बुला रही तेरी कर्तव्य डगर
जुटा खोई ऊर्जा नव उड़ान भर
अभी मातृ भूमि का क़र्ज़ है
तुझ पर उधार
रक्षक, कार्य तेरे बचे हैं
अभी यहाँ अपार,
खोल कातर बुझे नयन
कर तन मन धन अर्पण
अब न कर घायल होकर भी शयन
जुटा अदम्य,असीमित साहस
लहरा दे तिरंगा फिर से एक बार
बुला रहा तुझे साहस ,धैर्य,प्रेम का संसार
कर्मयोगी विजित होगा तू हर बार।
डॉ.यासमीन मूमल 27-02-2020