क्यों बंजारे से घूम रहे हो  क्यों अपने से विस्थापित हो,एक सामयिक रचना


क्यों बंजारे से घूम रहे हो 
क्यों अपने से विस्थापित हो
क्यों नैतिकता का पतन हुआ
क्यों ले घरबार डोल रहे हो।


कुछ तो किया होगा ऐसा जो 
मार मार भगाया तुमको 
क्यों कट्टरवाद भरा रहा 
क्यों छोड़ के घरबार भगा।


ये कल के कर्णाधार थे जो
गलियों राहों में भटक रहे
तोड़ के अपनी सीमाएं
ये हमारी सीमाओं में घुस चले।


ये भूखी नंगी बालाएं हैं
कहां तक सहज रह पाएंगी
भटकन इनकी तन मन की
ना जाने क्या कर जाएंगी।


नही वफादारी तुम में है जरा
उस देश को तुमने समझा न अपना
उस देश के बाशिन्दे जब,जाग नींद से हुए खड़े
तब छोड़ना तुमको वो देश पड़ा 
और भाग वहां से तुम पड़े।


अब खानाबदोशी करते हो
कोई मोल नही तुम्हारा अपना 
तुम दर दर भटका करते हो
नही कोई अब देश तेरा 
तुम खाना बदोशी फिरा करो ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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